ग्रामीण अधिवास Rural Settlements
अधिवास मानव निवास के मूल आधार हैं। मानव समूह जहाँ स्थायी वा अस्थायी रूप से घर बनाकर रहते हैं उन समूहों को मानव अधिवास कहते हैं। ये मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं-
स्थायी अधिवासअस्थायी अधिवास
स्थायी अधिवास Permanent settlements
उन क्षेत्रों में मिलते हैं जहाँ भूमि समतल होने के साथ-साथ उपजाऊ हो, जल प्राप्ति की सुविधा हो, मानवजीवन सुरक्षित हो, मानव के आकर्षण के लिए कोई तथ्य या संसाधन वहाँ मिलता हो और वहाँ आवागमन के लिए तथा सम्पर्क स्थापित करने के लिए मार्गों की सुविधा प्राप्त हो। सामान्यतः भूमध्यसागरीय मानसूनी एवं शीतोष्ण प्रदेशों में ही अधिकांश बस्तियाँ स्थायी रूप लिए होती हैं।
अस्थायी अधिवास Temporary Settlements
शिकारी, चरवाहे अथवा प्राचीन ढंग से खेती करने वाले कृषकों अथवा जहाँ पशुपालन ऋतुओं के अनुसार ऊँचे पहाड़ी भागों में किया जाता है या घाटियों में स्थानान्तरण होता रहता है। (जैसे आल्पस, हिमालय पर्वतीय घाटियों में), ऐसे क्षेत्रों में मुख्य रूप से अस्थायी अधिवास पाए जाते हैं।
स्थायी अधिवास के अनेक रूप देखने को मिलते हैं : बिखरे हुए घर, कृषक घर, पुरवा, गाँव, कस्वा और नगर। दूसरे शब्दों में, इनमें से कुछ को ग्रामीण अधिवास और अन्य को नगरीय अधिवास कहते हैं। सभ्यता के विकास के साथ-साथ इनके प्रतिरूप एवं प्रारूप में निरन्तर परिवर्तन व विकास या हास होता रहता है। इतना निश्चित है कि विकसित सभ्यता नगरों की ओर आकर्षित होकर उन पर आश्रित रहती है एवं परम्परागत समाज का विकास ग्राम्यांचल में ही विकसित हो पाता है।
ग्रामीण अधिवास (Rural settlements) में सामान्यतः एकाकी अधिवास, कृषक घर, पुरवा और गाँव आते हैं। ग्रामीण अधिवास से तात्पर्य उस अधिवास से होता है, जिनके अधिकांश निवासी अपने जीवनयापन के लिए भूमि के विदोहन पर निर्भर करते हैं, अर्थात् इनके निवासियों के मुख्य उद्यम, कृषि करना, पशुपालन, कुटीर उद्यम, मछलियाँ पकड़ना, लकड़ियाँ काटना, वन वस्तु संग्रह, आदि हैं। इनका जीवन एक प्रकार से ग्रामीण स्वरूप लिए होता है, किन्तु इनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इन बस्तियों में वे लोग भी रहते हैं जो कृषकों और कृषक श्रमिकों की अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
गाँवों की जनसंख्या कुछ ही घरों से लेकर 5,000 अथवा कभी-कभी इससे भी अधिक हो सकती है।
पुरवे (hamlets) गाँव से छोटे होते हैं और गाँव की अपेक्षा कम सघन होते हैं। इनमें मकान होते हैं और ये प्रायः बिखरे होते हैं। दुकान, स्कूल अथवा मन्दिर भी नहीं होते।
इसके विपरीत नगरीय अधिवास (Urban Settlements) में कस्बे, नगर और महानगर सम्मिलित किए जाते हैं। इन अधिवासों की विशेषता यह है कि इनमें गैरकृषि उद्योग अधिक किए जाते हैं, अनेक प्रकार की उद्योग, संचारतन्त्र परिवहन के साधनों का विकास, आदि भी पाए जाते हैं।
ग्रामीण अधिवासों के प्रकार या वर्गीकरण Types or Classification Rural Settlements
मानव अधिवासी का सामान्य वर्गीकरण उनकी स्थिति, प्रकार, स्वरूप, प्रतिरूप, भौतिक वातावरण, आर्थिक एवं सामाजिक और सांस्कृतिक-तकनीकी तथ्यों के आधार पर दो भागों में किया जाता है-
सामूहिक या सघन ग्रामीण बस्तियां Collective or Compact seulementsप्रविकीर्ण या बिखरी हुई ग्रामीण बस्तियां scattered Rural Settlements
सघन ग्रामीण अधिवास- सामान्यतः उन क्षेत्रों में मिलते हैं जहाँ मनुष्य सामाजिक दृष्टि से अपने पूरे समाज के साथ मिलकर रहना पसन्द करता है। विश्व की सर्वाधिक सघन बस्तियाँ नदियों के उपजाऊ मैदानों में मिलती हैं। यहाँ समतल भूमि, उपजाऊ मिट्टियाँ, पर्याप्त जल प्राप्ति, कृषि से स्थायी भरणपोषण, पशुपालन, यातायात के पर्याप्त साधन, शान्ति आदि कारक सघन बस्तियों के बसने के लिए उत्तरदायी हैं। चीन के ह्वांगहो, भारत के गंगायमुना दोआबमिस्त्र में नील घाटी, यूरोप में राइन, रूर, पो घाटी, वोल्गा, मिसीसिपी-मिसौरी घाटी (U.S.A.) की बस्तियाँ सघन बस्तियों के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
प्रविकीर्ण ग्रामीण अधिवास- एक-दूसरे से दूर-दूर बसे होते हैं जिनका पारस्परिक सम्वन्ध कच्ची सड़कों या पगडण्डियों से होता है। ऐसी बस्तियाँ सामान्यतः पहाड़ी क्षेत्रों में मिलती हैं, जहाँ कृषि के लिए के लिए उपयुक्त धरातलीय अवस्थाएँ नहीं पाई जाती और अनुर्वर मिट्टियाँ, कठोर जलवायु तथा प्रतिकूल धरातल के कारण बड़े पैमाने पर खेती की सम्भावनाएँ कम हैं। इस प्रकार के अधिवास पर्वतीय, मरुस्थलीय तथा सघन वन क्षेत्रों में मिलते हैं।
एस. डी. कौशिक ने मानव अधिवासों को मकानों की पारस्परिक दूरी के आधार पर निम्न चार भागों में विभक्त किया है-
प्रकीर्ण या एकाकी बस्तियां Dispersed or Isolated Settlementsसघन या एकत्रित बस्तियां Compact or Agglomerated Settlementsसंयुक्त बस्तियां Composite Settlementsअपखंडित बस्तियां Fragmented Settlements
प्रकीर्ण या एकाकी बस्तियाँ- ये वे बस्तियाँ हैं, जिनमें बस्ती के घर प्राय: अलग-अलग होते हैं, ऐतिहासिक दृष्टि से ये बस्तियाँ उतनी ही प्राचीन हैं जितनी कि मानव सभ्यता। जिस समय मनुष्य को सामाजिक संगठन का ज्ञान नहीं था उस समय उसका जीवन प्राय: व्यक्तिगत एवं पृथक था। अत: उनके निवास भी एकान्त में हुआ करते थे। आज भी इस प्रकार की बस्तियाँ चरवाहों, लकड़हारों व शिकारियों से सम्बन्धित अर्थव्यवस्था वाले क्षेत्रों में मिलती हैं, यही नहीं विश्व के सर्वाधिक विकसित राष्ट्रों- संयुक्त राज्य अमरीका एवं कनाडा आदि के कृषि क्षेत्रों में ऐसी बस्तियाँ सर्वत्र फैली हैं। इन बस्तियों में मकान अलग-अलग एक-दूसरे के बीच में कृषि भूमि को छोड़कर बने होते हैं। अतः इन्हें कृषि गृह (Farmstead) या वास गृह (Homestead) भी कहा गया है।
एकाकी बस्तियों के प्रत्येक घर में केवल एक परिवार ही रहता है, किन्तु यह सम्भव है कि उस परिवार का कोई नौकर या श्रमिक उसी मकान के किसी भाग में अथवा पृथक से एक कमरा बनाकर रह सकता है, यद्यपि इस प्रकार की बस्तियों में गाँव के मनुष्यों का सामाजिक संगठन कमजोर हो जाता है फिर भी इन अधिवासों से अनेक आर्थिक लाभ होते हैं तथा परिवार गाँव की राजनीतिक एवं लड़ाई-झगड़ों से दूर रहता है।
सघन या एकत्रित बस्तियाँ- जिन अधिवासों में, बस्ती के घर पासपास परस्पर सटे हुए होते हैं, उन्हें सघन या एकत्रित बस्तियाँ कहा जाता है। कुछ विद्वान इन्हें पुन्जित (Clustered) या संकेन्द्रित (Concentrated) अधिवास भी कहते हैं। इन अधिवासों का स्वरूप, आकार तथा कार्य प्रकीर्णन अधिवासों से भिन्न होते हैं जिसका प्रमुख कारण सामाजिक सम्बन्धों का अति जटिल होना है। प्रायः इन अधिवासों में मार्गों (सड़कों, गलियों) के निर्धारण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इन अधिवासों के प्रादुर्भाव के कई कारण हो। सकते हैं जिनमें पानी की सुविधा, भूमि की उर्वराशक्ति, औद्योगिक, धार्मिक, गमनागमन, स्वास्थ्य, शिक्षा, व्यापार, राजनीति आदि प्रमुख हैं।
फिंच और ट्रिवार्था (Finch and Trewartha) ने ऐसी सघन बस्तियों को न्यष्टित (Nucleated) तथा सघन (Compact) बस्तियां, ब्लाश (Blache) ने पुन्जित (Clustered) बस्तियाँ तथा बून्श (Brunhes) ने संकेन्द्रित (Concentrated) बस्तियाँ कहा है। कार्यों एवं गुणों के आधार पर सघन अधिवास प्रायः दो भागों 1) कृषि प्रधान या ग्रामीण अधिवास तथा 2) उद्योग प्रधान या नगरीय अधिवास में बाँटा जाता है, जिन्हें पुरवे या नगले (Hamlet)बसे होते हैं, गाँव Village, बाजारी गाँव (Market village), कस्बा (Town), नगर City) आदि भागों में बाँटा जाता है।
संयुक्त बस्तियाँ- संयुक्त बस्तियों के अन्तर्गत प्राय: एक केन्द्रीय ग्राम (Central village) होता है, किन्तु इसके साथ ही गाँव की सीमा के भीतर ही कुछ छोटे-छोटे पुरवे या नगले (Hamlet) बसे होते हैं। वस्तुतः ये पुरवे विभिन्न कारणोंवश केन्द्रीय ग्राम को छोड़कर आए हुए एक या कई परिवारों का अपेक्षाकृत एक छोटा समूह होता है, जिसमें प्रायः एक जाति बिरादरी के लोग रहते हैं। उत्तर भारत में ऐसे अनेक ग्राम मिलते हैं, जिनमें केन्द्रीय ग्राम के अतिरिक्त कई पुरवे सम्मिलित होते हैं। प्रो. रामलोचन सिंह ने इस प्रकार की बस्तियों को अर्द्ध सघन कहा है (Semi Compact)।
अपखण्डित बस्तियाँ- जिस ग्रामीण अधिवास में गाँव की सीमा के भीतर ही बसाव बिखरा हुआ मिलता है अर्थात् गाँव के घर एक-दूसरे से थोड़ी दूर पर बने होते हैं अथवा छोटे-छोटे पुरवे या नगले थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बसे होते हैं तथा जिनमें कोई भी केन्द्रीय ग्राम नहीं होता उसे अपखण्डित बसाव कहा जाता है। इस प्रकार के अधिवासों को एकाकी अधिवास नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अमेरिकन या यूरोपीय फार्मगृह के समान विपरीत इन छोटी-छोटी बस्तियों में एक ही परिवार का होना आवश्यक नहीं है, दूसरे इनमें सामाजिक संगठन, श्रम विभाजन सामुदायिक भावना पाई जाती है। प्रो. स्पेट महोदय ने ऐसी बस्तियों को प्रविकीर्ण (Dispersed), प्रो. सिंह ने पुरवों का अधिवास या अपखण्डित (Fragmented) अधिवास कहा है।
अपखण्डित बस्तियाँ मुख्यतः बंगाल के डेल्टा प्रदेश, गंगा, घाघरा, दोआब, राप्ती नदी के पश्चिम में सरयू पार मैदान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ऊपरी गंगा-यमुना मैदान (सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, रामपुर, बिजनौर, पीलीभीत) तथा अम्बाला आदि जिलों में पाई जाती हैं।
कार्यों एवं गुणों के आधार पर अधिवास दो प्रकार के होते हैं-
ग्रामीण अधिवास नगरीय अधिवास
विश्व में ग्रामीण अधिवासों का वितरण Distribution of Rural Settlements
एशिया महाद्वीप में ग्रामीण अधिवास- एशिया में, विशेषतः दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों में ग्रामीण बस्तियाँ अधिक महत्वपूर्ण हैं। इनमें अधिकतर घनी बस्तियाँ पाई जाती हैं। जीवन और सम्पति की सुरक्षा की दृष्टि से बिखरे हुए गाँव इन भागों में कम ही मिलते हैं। चीन, जापान, भारत, श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्याँमार, आदि देशों में 70 से 80 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में रहती है, जिनका मुख्य उद्यम खेती करना है। चीन में 88% जनसंख्या 90,000 से कम जनसंख्या वाली बस्तियों में निवास करती है।
प्रो. ब्लाश के अनुसार, भारत ग्रामीण अधिवास का उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करता है। अधिकतर गाँव उत्तरी भारत में गंगा के बड़े मैदान और दक्षिण में नदियों की घाटियों तथा डेल्टाई प्रदेशों में मिलते हैं। बड़े गाँव का आधिक्य उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में जहाँ कृषि का विकास अन्य राज्यों की अपेक्षा अच्छा हुआ है, पाया जाता है। छोटे गाँव मुख्यतः राजस्थान, असम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में पाए जाते हैं, जहाँ जल-प्रवाह प्रतिकूल अथवा शुष्कता का साम्राज्य है या भूमि ऊँची-नीची अधिक है।
उत्तरी अमरीका- संयुक्त राज्य अमरीका और कनाडा में अधिकांश किसान कृषि गृहों (Farm-steads) में रहते हैं। कहीं-कहीं खेतों के बीच में अथवा राजमार्गों के चौराहों के निकट सामूहिक बस्तियाँ भी पायी जाती हैं, किन्तु ये सामान्यतः छोटी होती हैं। ये बस्तियाँ आदान-प्रदान, वितरण और ग्रामीण श्रमिकों के केन्द्र होते हैं। इन कृषि-गृहों में कृषि के यन्त्रों, बीज, खाद, पशुओं का चारा, अन्य सामान और अनाज रखने के लिए उपयुक्त व्यवस्था होती है। इसके अलावा सेण्टजॉन, लोलैण्ड झील एवं मिसीसिपी नदी के डेल्टा में सड़कों के किनारे-किनारे अत्यन्त निकट फैले गाँव की पंक्तियाँ भी दिखायी पड़ती हैं। यूरोप में ग्रामीण अधिवास- इस महाद्वीप में अत्यन्त जटिल प्रकार के अधिवास हैं जिनमें खुले हुए एकाकी कृषि गृहों से लगाकर सुविकसित बड़े गाँव स्थित हैं। उत्तर के अत्यन्त कठोर वातावरण में ग्रामीण अधिवास छोटे और विखरे हुए तथा दक्षिण में काली मिट्टी के क्षेत्रों में ये बड़े और सघन मिलते हैं।
रूस के यूरोपीय तथा एशियाई दोनों ही भागों में सधन ग्रामीण अधिवास मिलते हैं। यहाँ कृषिगृह बिखरे हुए नहीं पाए जाते। उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों के वनों को साफ कर, उनमें विस्तृत खेती की जाती है, सघन अधिवास पाए जाते हैं। इन अधिवासों का स्वरूप सामूहिक सहकारी खेत होता है।
ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप Pattern Rural Settlements
ग्रामीण बस्तियों के बसाव में भौगोलिक कारकों का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता है। कहीं रेखिक तो कहीं गोलाई आदि आकार बस्तियों के समूह बनाते हैं। इसे अधिवास प्रतिरूप कहते हैं। यह मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रकार का मिलता है-
रेखीय अथवा पंक्तिनुमा Linear- गाँव बहुधा किसी सड़क के दोनों ओर नदियों के ऊँचे उठे भागों, नहरों, किसी संकरी घाटी के समानान्तर अथवा किसी सोते के किनारे एक पंक्ति के रूप में बसे होते हैं। इसी प्रकार के चौकपट्टी प्रतिरूप नाभीय प्रतिरूप गाँवों में मकान प्रायः एक या अनेक पंक्तियों में बने होते हैं।अरीय त्रिज्याकार Radial- जिन स्थानों में कई सड़क मार्ग आकर मिलते हैं, वहां कृषि वस्तुओं के आदान-प्रदान की सुविधाएँ मिल जाती हैं। ऐसे मिलन बिन्दुओं पर गाँवों का श्रीगणेश हो जाता है। इनमें मकान सड़कों के सहारे-सहारे बनाए जाते हैं जो चौराहे पर जाकर मिल जाती हैं।तीरनुमा अथवा लम्बाकार स्वरूप Arrow type or Elongated- गाँव प्रायः अन्तरीपों के धिरे पर मिलते हैं जो तिन ओर जल से घिरे होते हैं। अन्तरीप का अगला सिरा अधिक संकरा और लम्बा तथा पिछला भाग अधिक चौड़ा और विस्तृत होता है। उसी विस्तृत भाग पर बस्तियाँ होती हैं।चोकपट्टी या चौराहों पर बने गाँव CheckarBoard- दो सड़कों के मिलन अथवा चौराहों पर बसने आरम्भ होते हैं। इनकी गलियाँ और सड़कें एक-दूसरे के समानान्तर होती हैं और ये परस्पर समकोण बनाती हैं।जूते की डोरी के आकार के गाँव Shoe string Villages- अधिकतर नदी के प्राकृतिक बाँध या बाढ़ से ऊपर वाले क्षेत्रों तथा समुद्रतटीय कूटों पर बसे पाए जाते हैं। इस प्रकार के गाँवों में बस्ती का विस्तार विभिन्न दिशाओं में विसर्पाकार या डोरी जैसा होता है।आयताकार Rectangular- गाँव सामान्यतः मरुस्थलीय क्षेत्रों में (जहाँ धूल भरी ऑधियाँ चलती हैं) अथवा मैदानी भागों में जहाँ (डाकू और लुटेरों के आक्रमण का भय रहता है) पाए जाते हैं। किसी जल-स्रोत या तालाब के निकट चौकोर गाँव बनाए जाते हैं जिन्हें परकोटा घेरे रहता है। सम्पूर्ण उत्तर-पश्चिमी भारत में अधिकांश मध्ययुगीन गाँव ऐसे ही होते थे।सीढ़ी के आकार Terraced- के गाँव मुख्यतः पर्वतीय ढालों पर, नदियों की घाटियों में, पर्वतकूटों (Ridges) तथा ढाल के मध्य भागों पर मिलते हैं। यहाँ मकान सीढ़ियाँ काटकर बनाए जाते हैं।वृत्ताकार प्रतिरूप Circular Pattern- इस प्रकार के गाँव सामान्यतः किसी झील, तालाब या वट वृक्ष के चारों ओर बसे होते हैं। कभी-कभी किसी केन्द्रीय मकान के (मुखिया या जमींदार अथवा पंचायतघर) चारों ओर भी इसी प्रकार के गाँव बस जाते हैं। ऐसे गाँव मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
नाभिक गाँव Nuclear- जिसके केन्द्र में गाँव की नीव डालने वाले मुखिया का घर होता है, और
नीहारकीय गाँव Nebular- जिसके केन्द्र में तालाब, चबूतरा या पंचायती घर आदि होता है जहाँ गाँव के लोग सामूहिक रूप से सामाजिक उत्सव, नृत्य, गायन, नाटक अथवा सभाएं करते हैं और जहाँ मेले भी लगते हैं। भारत में दोनों ही प्रकार के गाँव गंगा-यमुना के दोआब, पंजाब, विहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, हरियाणा में मिलते हैं।
पंखा प्रतिरूप- डेल्टा प्रदेशों में समुद्रतटीय बस्तियों का विकास नदियों की उपशाखाओं के सहारे-सहारे होता है। तट की ओर जो दिशा भू-रचना की दृष्टि से अधिक अनुकूल होती है, उस पर इमारत बनती चली जाती है। भारत में ऐसे गाँव महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी के डेल्टाओं में हैं। मधुछत्ता प्रतिरूप- दक्षिणी अफ्रीका में जुलू जाति के लोग तथा भारत में नीलगिरि की पहाड़ियों के निवासी टोडा हिंसक जानवरों तथा शत्रुओं से रक्षा के लिए इस प्रकार की बस्तियाँ बनाते हैं।जूते की डोरी प्रतिरूप- अधिकांश नदियों के प्राकृतिक कूट के बाँध पर या समुद्रतटीय कूट पर वसे हुए या बाढ़ से ऊपर वाले क्षेत्र में इसी प्रारूप के अधिवास मिलते हैं। इन्हें फिन्च एवं ट्रिवार्था ने शू-स्ट्रिंग प्रतिरूप कहा है।अनियमित या अनाकार प्रतिरूप- ऊबड़खाबड़ धरातल, दलदली क्षेत्र, झीलों और वनों की बहुलता के क्षेत्रों में जहाँ सुरक्षा का अभाव होता है, वहाँ मकान अनियोजित रूप से बनाए जाते हैं। बस्तियों का विस्तार स्थानीय वातावरण के अनुसार होता है। चीन के दक्षिणी भाग में, भारत और पाकिस्तान के अधिकांश क्षेत्रों में अनियमित और अनाकार प्रतिरूप की बस्तियाँ बड़ी संख्या में पाई जाती हैं।
अब अनेक देशों में नियोजित (planned) गाँव भी बसाए जाने लगे हैं, जिन्हें आदर्श गाँव की संज्ञा दी जाती है। इसमें रूस में कोलखोजी, इसराइल के सामुदायिक गाँव तथा पंजाब और उत्तरी राजस्थान के नहरी क्षेत्रों में नहरी उपनिवेश मुख्य हैं। इन गाँवों में सभी सुविधाएँ उपलब्ध करायी गयी हैं। सुनियोजित ग्रामीण बस्तियाँ आयरलैण्ड, इंग्लैण्ड तथा संयुक्त राज्य में भी मिलती हैं।
भारतीय गाँवों की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
भारतीय गाँव बड़े पुराने हैं। ये भारतीय संस्कृति के मूल आधार माने जाते हैं। महात्मा गाँघी के शब्दों में, “यदि गाँव की प्राचीन सभ्यता नष्ट हो गयी तो देश भी अन्ततः नष्ट हो जाएगा।” इनका मुख्य उद्यम खेती, पशुपालन एवं अनेक प्रकार के शिल्प प्रधान कुटीर उद्योग हैं।गाँवों के निर्माण में स्थानीय रूप से मिलने वाली सामग्री का ही उपयोग किया जाता है। ये प्रायः मिट्टी, ईटों, लकड़ी, बाँस, चूना और घास-फूस के बने होते हैं। पत्थर के गाँव भी अनेक क्षेत्रों में मिलते हैं।भारतीय गाँव प्रायः चारों ओर के वृक्षों के कुंजों से घिरे होते हैं। समुद्रतटीय क्षेत्रों में घरों के निकट नारियल, सुपारी, केले और फलों के वृक्ष तथा अन्यत्र पीपल, नीम, शीशम, आदि के वृक्ष मिलते हैं।सार्वजनिक उपयोग के लिए कुएँ, तालाव, मन्दिर, सराय या पंचायत घर होता है, जहाँ गाँव से सम्बन्धित सभी कायों पर निर्णय लिया जाता है।भारतीय गाँवों में जाति प्रथा एवं श्रमविभाजन में स्पष्ट सम्बन्ध दिखायी पड़ता है। वैश्य, ब्राह्मण, नाई, धोबी, कुम्हार, लुहार, जुलाहे एवं शूद्र जाति के लोग सभी अपना कार्य करते हैं तथा उनकी बस्तियाँ अलग-अलग भागों में स्थापित की जाती है।भारतीय गाँव किसी सुनिश्चित योजना के अनुसार नहीं बसाए गए। इसीलिए इनकी गलियाँ टेढ़ीमेढ़ी और वसावट अत्यन्त अव्यवस्थित होती है। गाँव के बाहर ही कूड़े के ढेर दिखायी पड़ते हैं तथा शौचालयों का अभाव होता है। गाँव के मध्यवर्ती भाग में प्रायः उच्च कुल वालों के घर बने होते थे। वैसे सम्पूर्ण गाँव पारस्परिक सहयोग, भाई चारा एवं दुःख-सुख में आपस में सहायता की विशेषता पाई जाती है। यहाँ कट्टर जातिवाद या सम्प्रदायवाद का पूर्णतः अभाव पाया जाता है।कृषकों के घरों के आँगन में ही या उससे संलग्न भाग में पशुओं के लिए बाड़ा, चारा, औजार, आदि रखने का स्थान होता है। दीवारों पर गोवर के कण्डे आदि सूखने को लगा दिए जाते हैं।गाँव में ही प्रायः सभी आवश्यकता की वस्तुएँ महाजनों, छोटे फुटकर व्यापारियों द्वारा उपलब्ध करा दी जाती हैं, अतः गाँव अधिकांशतः स्वावलम्बी होते हैं। केवल , कपड़ा, दियासलाई, केरोसीन, सीमेण्ट, आदि के लिए निकटवर्ती मण्डियों/बाजारों पर निर्भर रहना पड़ता है।गाँव के अधिकांश निवासी निरक्षर, अज्ञानी एवं रूढ़िवादी हैं, जो नयी उत्पादन प्रणाली के बिना सन्तुष्ट हुए एकदम ही नहीं अपनाते। प्रायः सभी परम्परा से एक ही प्रकार के कार्यों में लगे रहते हैं।अब भारतीय गाँवों में तेजी से परिवर्तन रहा है। शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ नई तकनीक, नए धन्धे एवं व्यावसायिक उत्पादन की मनोवृति बढ़ने लगी है। अब गाँवों में भी 40 से 50 प्रतिशत घर सीमेण्ट, चूना, पत्थर नई तकनीक से आकर्षक ढंग से बनाए जाते हैं। यहाँ से घी, दूध, सब्जी, शिल्प की वस्तुएँ नगरों को भेजी जाती हैं एवं गाँवों से रोजगार हेतु नगरों की ओर पलायन में भी तेजी से वृद्धि होती जा रही है।वर्तमान योजना काल के अन्तर्गत केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारें ने गाँघी ग्राम योजना, अम्बेडकर गाँव योजनाओं अपना गाँव अपना काम, अन्त्योदय योजना या पिछड़े को पहले, आदि के अन्तर्गत गाँवों में आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध कराकर आदर्श गाँव विकसित कर रही हैं।ग्रामीण रोजगार तथा कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देकर गाँवों का विकास तीव्र गति से किया जा रहा है।
Thanks for the arty
ReplyDeleteNagrya adivas awam gramin adieas me antar kya hai?
ReplyDeleteVery helpful thank u
ReplyDeleteGood veryhelpfly this answer
ReplyDeleteBeautiful
ReplyDeleteVery helpful
ReplyDeleteGood concept
ReplyDeleteThnks a lot
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ReplyDeletegood
ReplyDeleteVery helpful
ReplyDeleteThanks a lot
ReplyDeleteWow fainali i completed my question tq sir
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