संवैधानिक प्रमुख, वैधानिक आयोग समितियां एवं परिषद Constitutional Head, Statutory Committees And Councils
अन्तर्राज्यीय परिषद
संविधान के अनुच्छेद 263 के अंतर्गत केंद्र एवं राज्योँ के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए राष्ट्रपति एक अन्तर्राज्यीय परिषद की स्थापना कर सकता है।पहली बार जून, 1990 मेँ अन्तर्राज्यीय परिषद की स्थापना की गई, जिसकी पहली बैठक 10 अक्टूबर, 1990 को हुई थी।इसके सदस्य होते हैं- प्रधानमंत्री तथा उनके द्वारा मनोनीत 6 कैबिनेट स्तर के मंत्री, सभी राज्य व संघ राज्य क्षेत्र के मुख्यमंत्री एवं संघ राज्य क्षेत्रोँ के प्रशासक।अन्तर्राज्यीय परिषद की बैठक वर्ष मेँ तीन बार की जाएगी जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री या उनकी अनुपस्थिति मेँ प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त कैबिनेट स्तर का मंत्री करता है। परिषद की बैठक के लिए आवश्यक है कि कम से कम दस सदस्य अवश्य उपस्थित हों।
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वित्त आयोग
संविधान के अनुच्छेद 280 मेँ वित्त आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है।वित्त आयोग के गठन का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया है।वित्त आयोग मेँ राष्ट्रपति द्वारा एक अध्यक्ष एवं चार अन्य सदस्य नियुक्त किए जाएंगें।
अब तक 14 वित्त आयोग का गठन किया जा चुका है। 2010 से 2015 की अवधि वाले 13वें वित्त आयोग के अध्यक्ष, पूर्व वित्त सचिव विजय केलकर थे। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर वाई.वी. रेड्डी 14वें वित्त आयोग के अध्यक्ष होंगे। 14वां वित्त आयोग अप्रैल 2015 से 2020 तक केंद्र और राज्यों के बीच करों के बंटवारे पर सुझाव देगा। यह आयोग 1 अप्रैल, 2015 के कार्य शुरू करके विभिन्न विषयों पर अपनी सिफारिशें देगा।वित्त आयोग का गठन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 (1) एक के द्वारा किया जाता है।
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राष्ट्रीय विकास परिषद्
योजना के निर्माण मेँ राज्योँ की भागीदारी होनी चाहिए, इस विचार को स्वीकार करते हुए सरकार के एक प्रस्ताव द्वारा 6 अगस्त, 1952 को राष्ट्रीय विकास परिषद का गठन हुआ।प्रधान मंत्री परिषद का अध्यक्ष होता है। योजना आयोग का सचिव ही इसका सचिव होता है।भारतीय संघ के सभी राज्यो के मुख्यमंत्री एवं योजना आयोग के सभी सदस्य इसके पदेन सदस्य होते हैं।योजना को क्रियान्वित करने मेँ राज्योँ का सहयोग प्राप्त करना इसका मुख्य उद्देश्य है।योजना आयोग द्वारा निर्मित पंचवर्षीय योजना के प्रारुप को सर्वप्रथम केंद्रीय मंत्रिमंडल को सौपा जाता है।उसकी सहमति के पश्चात, इसे राष्ट्रीय विकास परिषद की स्वीकृति के लिए उसके समकक्ष प्रस्तुत किया जाता है।सामाजिक व आर्थिक विकास के लिए योजना के संदर्भ मेँ नीतिगत विषयों पर संसद के पश्चात् राष्ट्रीय विकास परिषद सबसे बडा निकाय है।राष्ट्रीय विकास परिषद को योजना आयोग के परामर्शदात्री निकाय के रुप मेँ स्वीकार किया गया है।इसकी अनुशंसायें बाध्यकारी नहीँ होती हैं।यह केंद्र सरकार व राज्य सरकारोँ को अपनी अनुशंसा प्रस्तुत करता है।इस एक वर्ष मेँ इसकी न्यूनतम दो बैठकें होनी चाहिए।केंद्र सरकार, राज्य सरकार तथा योजना आयग के बिच में सेतु के रूप में कार्य करना इसका प्रथम व सर्वप्रथम कृत्य है।
योजना आयोग
भारत मेँ योजना आयोग के संबंध मेँ कोई संवैधानिक प्रावधान नहीँ है।15 मार्च, 1950 को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पारित प्रस्ताव के द्वारा योजना आयोग की स्थापना की गयी थी। योजना आयोग का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है।इसका गठन 15 मार्च, 1950 को भारत सरकार के एक कार्यपालिका प्रताप के द्वारा हुआ था।इसकी स्थापना 1946 मेँ के. सी. नियोगी की अध्यक्षता मेँ गठित सलाहकारी आयोजन बोर्ड (Advisory Planning Board) की अनुशंसा पर की गई थी।यह एक संविधानेत्तर (Extra Constitutional) व गैर संवैधानिक (Non-Statutory) निकाय है।यह भारत मेँ सामाजिक आर्थिक विकास के आयोजन की दृष्टि से प्रमुखतम / सर्वोच्च संस्था है।प्रधानमंत्री योजना आयोग का पदेन (Ex-Officio) अध्यक्ष होता है।इस आयोग का उपाध्यक्ष ही इसका तथ्येन (defacto) कार्यकारी प्रमुख व पूर्णकालिक प्रमुख होता है।उपाध्यक्ष ही केंद्रीय कैबिनेट के समक्ष पंचवर्षीय योजना के निर्माण और उसके प्रारुप की प्रस्तुति हैतु उत्तरदायी होता है।उसकी नियुक्ति केंद्रीय कैबिनेट द्वारा एक निश्चित अवधि के लिए की जाती है तथा वह कैबिनेट मंत्री का दर्जा रखता है। यद्यपि वह कैबिनेट का सदस्य नहीँ होता तथापि उसे सभी बैठकोँ मेँ शामिल होने के लिए आमंत्रित किया जाता है (वोट देने के अधिकार से रहित)।कुछ केंद्रीय मंत्री योजना आयोग के अल्पकालिक सदस्य नियुक्त किए जाते हैंवित्त मंत्री तथा अन्य मंत्री आयोग के पदेन सदस्य होते हैं।योजना आयोग मेँ 4 से 7 तक पूर्णकालिक विशेषज्ञ सदस्य होते हैं।योजना आयोग का एक सदस्य सचिव होता है, जो प्रायः भारतीय प्रशासनिक सेवा का वरिष्ठ अधिकारी होता है।योजना आयोग पूर्णतः केंद्र द्वारा गठित निकाय है, जिसमेँ राज्यों का कोई प्रतिनिधित्व नहीँ होता।1952 मेँ आयोजन आकलन संस्थान (Planning Evaluation Organisation) की स्थापना योजना आयोग की स्वतंत्र इकाई के रुप मेँ की गई।इसे Super cabinet, An Economic cabinet, Parallel Cabinet, The Fifth Wheel of the coach इत्यादि भी कहा जाता है।
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निर्वाचन आयोग
निर्वाचन आयोग का गठन मुख्यमंत्री मुख्य निर्वाचन आयुक्त निर्वाचन आयुक्तों से किया जाता है, जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।तीनो का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष जो पहले हो।पहले चुनाव आयोग एक सदस्यीय आयोग था, परन्तु अक्टूबर, 1993 ई. मेँ तीन सदस्यीय आयोग बना दिया गया।निर्वाचन आयोग के मुख्य कार्य निम्न हैं-चुनाव क्षेत्रोँ का परिसीमन, मतदाता सूचियोँ को तैयार करवाना, विभिन्न राजनीतिक दलो को मान्यता प्रदान करना, राजनीतिक दलो को आरक्षित चुनाव चिन्ह प्रदान करना, चुनाव करवाना एवं राजनीतिक दलों के लिए आचार संहिता तैयार करवाना।निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता के लिए संवैधानिक प्रावधान निम्न हैं- निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है, अर्थात् इसका निर्माण संविधान मेँ किया है। मुख्य चुनाव आयुक्त महाभियोग जैसी प्रक्रिया से ही हटाया जा सकता है।मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्तोँ की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं, मुख्य चुनाव आयुक्त का दर्जा सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समान ही है, नियुक्ति के पश्चात मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्तोँ की सेवा शर्तोँ मेँ कोई और अलाभकारी परिवर्तन नहीँ किया जा सकता है, मुख्य चुनाव आयुक्त चुनाव एवं अन्य चुनाव आयुक्तों का वेतन भारत की संचित निधि मेँ से दिया जाता है।
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राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग
मानवाधिकार संरक्षण कानून 1993 पारित किया गया था, जो 28 सितम्बर,1993 को प्रभावी हुआ। इसे मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) कानून 2005 के तहत संशोधित किया गया।उपर्युक्त कानून की धारा 3 के तहत सितम्बर, 1993 मेँ राष्ट्रपति द्वारा जारी एक अध्यादेश द्वारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया।राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष अध्यक्ष की नियुक्ति केंद्र सरकार प्रधानमंत्री की अध्यक्षता मेँ गठित समिति जिसमेँ लोकसभा के अध्यक्ष, राज्यसभा के उप सभापति, संसद मेँ दोनो सदनोँ मेँ विपक्ष के नेता, गृहमंत्री की अनुशंसा पर करती है।आयोग के अध्यक्ष पद पर नियुक्त होने के लिए वही उम्मीदवार पात्र होगा, जो भारत के सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश रह चुका हो।आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति उसके कार्यभार ग्रहण करने के दिन से 5 साल के लिए या 70 वर्ष की आयु पूरी करने तक होती है।आयोग के सदस्य की नियुक्ति 5 साल के लिए होती है और वह एक बार और पांच वर्ष की नियुक्त होने के लिए आवश्यक है, परन्तु वह 70 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद सदस्य नहीँ रहैगा।आयोग का अध्यक्ष या सदस्य आयोग से हटने के बाद भारत सरकार या फिर राज्य सरकार मे नौकरी पाने के लिए अनर्ह होगा।आयोग के अध्यक्ष या सदस्य अपने पद से राष्ट्रपति को संबोधित इस्तीफे द्वारा पद छोड़ सकता है।आयोग के अध्यक्ष या सदस्य को सिद्ध अव्यवहारों या अक्षमता के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है, हालांकि हटाने से पूर्व सर्वोच्च न्यायालय की जांच की आवश्यकता है।इस आयोग के संबंध मेँ सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके पास अपनी भी जांच मशीनरी है, और यह केवल पुलिस आदि पर निर्भर नहीँ रहती।मानवाधिकार संरक्षण कानून की धारा 21 मेँ राज्य मानवाधिकार आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है।
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बच्चो के लिए राष्ट्रीय आयोग
अप्रैल 2003 मेँ, भारत सरकार ने ‘बच्चो के लिए एक राष्ट्रीय आयोग’ और ‘बच्चो के लिए एक राष्ट्रीय चार्टर’ का प्रस्ताव रखा।
गठन
आयोग एक संविधानिक निकाय (statutory body) होगा और 7 सदस्योँ से मिलकर बनेगा, जिसका अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त न्यायाधीश उच्चंन्यायालय का न्यायाधीश या बालकल्याण के क्षेत्र मेँ ख्याति प्राप्त व्यक्ति होगा।अन्य सदस्योँ मेँ बाल स्वास्थ्य, बाल शिक्षा, बाल पालन-पोषण और बाल विकास के क्षेत्र मेँ विशेषज्ञ और पर्याप्त अनुभव रखने वाले व्यक्ति होने चाहिए।यह परामर्शदात्री निकाय है और इसका निर्माण सरकार के ऊपर बाध्यकारी नहीँ है।
शक्तियाँ औरकार्य
बच्चो के अधिकार और उसके विकास से संबंधित मामलोँ की जांच और छानबीन या तो स्वयं करेगा या फिर उनके अधिकारोँ के उल्लंघन की शिकायत प्राप्त होने पर करेगा।यह सरकार को बच्चो से संबंधित नीति बनाते समय सलाह देगा।वह बच्चो से सम्बंधित नीति बनाते समय सलाह देगा। वह बच्चों से सम्बद्ध ऐसी नीतियों और उनके क्रियान्वयन की समीक्षा भी करेगा।यह बच्चों और उनके लिए बनी नीतियों और उनके क्रियान्वयन से संबंधित मामलोँ पर रिपोर्ट तैयार करेगा और केंद्र सरकार को प्रस्तुत करेगा।यह बच्चों के विकास के क्षेत्र मेँ हो रही खोजों को बढ़ावा भी देगा और बच्चो को शिक्षा देने मेँ सहायता भी प्रदान करेगा।
आयोग का महत्व
बच्चो के हितों को बढ़ावा देने के लिए यह एक अद्वितीय विधायन है और यह इस कार्य मेँ बहुत दूर तक जाएगा।यह बच्चों के कार्य-स्थल पर होने वाले दुर्वव्हार पर भी ध्यान देगा जैसे बाल श्रम, बर्बरता और और हिंसा (विशेष रुप से यौन संबंधी)।बच्चो के सर्वांगीण विकास का नेतृत्व करेगा।
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राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग
संविधान मेँ पिछड़ोँ की कोई परिभाषा नहीँ दी गई है। अनुच्छेद 340 में पिछड़े वर्ग के लोगोँ की दशा के अन्वेषण के लिए आयोग की नियुक्ति का उपबंध है।संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत भारत के राष्ट्रपति ने पहले अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन 29 जनवरी 1953 को काका कालेलकर की अध्यक्षता मेँ किया। सरकार ने इस आयोग की रिपोर्ट को अमान्य कर दिया।राष्ट्रपति ने दुसरे अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन 20 सितम्बर, 1978 को बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल की अध्यक्षता मेँ किया।मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर अगस्त, 1990 मेँ केंद्र सरकार ने सरकारी नौकरियोँ मेँ 27 प्रतिशत स्थान पिछडे वर्गो के लिए आरक्षित करने का निर्णय लिया।आयोग नागरिकोँ के किसी वर्ग को पिछड़े वर्ग की सूची मेँ शामिल करने के आवेदन का पुनरीक्षण करेगा और किसी पिछडे वर्ग को ज्यादा या कम प्रतिनिधित्व की सिफारिशों पर विचार करेगा।
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राष्ट्रीय महिला आयोग
राष्ट्रीय महिला आयोग विधिक निकाय है। इसका गठन राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 के तहत 31 जनवरी, 1992 मेँ किया गया।राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 मेँ आयोग के एक अध्यक्ष तथा पांच सदस्योँ का प्रावधान है। इन सबकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है। अध्यक्ष एवं सदस्य का कार्यकाल 3 वर्षों का होता है।राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 के 1 (ख) के अनुसार आयोग समय-समय पर अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौपेंगा, जो इसे अपनी कार्यवाही रिपोर्ट के साथ संसद के प्रत्येक सदन मेँ पेश करेगा। यदि रिपोर्ट मेँ कोई मामला किसी राज्य से संबंधित है, तो आयोग वह रिपोर्ट या उसके भाग मेँ संबंधित राज्य सरकार को भेजता है, जो कार्यवाही रिपोर्ट के साथ उसे विधानमंडल के सदन मेँ प्रस्तुत करता है।जांच के संबंध मेँ आयोग के पास सिविल कोर्ट का अधिकार होगा। वह भारत के किसी भी भाग से किसी भी व्यक्ति को सम्मन जारी कर सकता है तथा उसकी अपने समक्ष उपस्थिति सुनिश्चित कर सकता है।आयोग के पास अधिनियम की धारा (1) के तहत सिविल न्यायालय के समान शक्ति है। आयोग भारत के किसी क्षेत्र मेँ किसी भी व्यक्ति को अपने सामने उपस्थित होने के लिए बाध्य कर सकता है।
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केन्द्रीय सतर्कताआयोग
सतर्कता के क्षेत्र मेँ केंद्र सरकार के अभिकरणों को परामर्श देने तथा मार्गदर्शन करने के लिए श्री कें संथानम के नेतृत्व मेँ गठित ‘भ्रष्टाचार निरोध से संबंधित समिति’ की अनुशंसा पर फरवरी 1964 मेँ सरकार द्वारा केंद्रीय सतर्कता आयोग की स्थापना की गई।केंद्रीय सतर्कता आयोग को सतर्कता संबंधी सर्वोच्च संस्था माना जाता है, जो किसी भी कार्य पालिका प्राधिकरण के नियंत्रण से मुक्त है। यह केंद्र सरकार के तहत् सतर्कता से संबंधित सभी गतिविधियोँ की निगरानी करता है और केंद्र सरकार के विभिन्न संगठनोँ को उनके सतर्कता कार्योँ की योजना के क्रियान्वयन और सुधार के संबंध मेँ परामर्श देता है।विनीत नारायण बनाम भारत संघ के वाद के संदर्भ मेँ सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त (CVC-Central Vigilence Commissioner) को विधिस्थापितदर्जा देने का निर्देश दिया जो उस समय तक केवल एक परामर्शदात्री निकाय था और केंद्रीय जांच ब्यूरो के कामकाज को प्रभावशाली ढंग से निगरानी के लिए भी इसे उत्तरदायी बनाया।केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, जो कि संघ लोक सेवा केँ के अध्यक्ष के स्तर का है, केंद्रीय सतर्कता आयोग का नेतृत्व करता है। कारण यह है कि केंद्रीय सतर्कता आयोग के क्षेत्राधिकार का विस्तार, केंद्र सरकार के सभी विभागोँ, राष्ट्रीयकृत बैंकोँ सहित केंद्र सरकार की कंपनियों तथा केंद्र सरकार के संगठनोँ तक है।एक केंद्रीय सतर्कता आयुक्त - अध्यक्षअन्य सतर्कता आयुक्त
केंद्रीयसतर्कताआयुक्तऔरसतर्कताआयुक्तोंकीनियुक्ति
केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और अन्य सतर्कता आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुहर सहित अधिपत्र द्वारा एक समिति की सिफारिश प्राप्त करने के बाद करता है, जो कि निम्नलिखित लोगोँ से मिलकर बनी होती है-प्रधानमंत्री - अध्यक्षगृहमंत्री - सदस्यलोकसभा के विपक्ष का नेता - सदस्य
सेवाऔरशर्तें
केंद्रीय सतर्कता आयुक्त का कार्यकाल उसके कार्यकाल मेँ प्रवेश की तारीख से लेकर चार वर्षोँ का होता है या वह अपनी आयु के 65 वर्षोँ तक, (इनमें से जो पहले हो) अपने पद पर बना रहता है। उसका कार्यकाल समाप्त होने के बाद वह दोबारा आयोग मेँ नियुक्ति के लिए अपात्र होगा।कार्यकाल समाप्त होने के बाद केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और अन्य सतर्कता आयुक्त भारत सरकार या राज्य सरकार के लाभ के किसी पद को प्राप्त करने के लिए अपात्र होंगे।
केंद्रीयसतर्कताआयुक्तकेवेतनऔरभत्तेऔरअन्यसेवाशर्तें
केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के स्तर का होगा।अन्य सतर्कता आयुक्त, संघ लोक सेवा आयोग के अन्य सदस्योँ के स्तर के होंगे।
केंद्रीयसतर्कताआयुक्तकीपदच्युति
केंद्रीय सतर्कता आयुक्त या किसी अन्य सतर्कता आयुक्त को उसके पद से केवल सिद्ध कदाचार या अक्षमता के आधार पर राष्ट्रपति के आदेश द्वारा ही हटाया जा सकता है। यदि राष्ट्रपति के निर्देश पर उच्चतम न्यायालय ने जाँच के उपरांत केंद्रीय सतर्कता आयुक्त या किसी अन्य सतर्कता आयुक्त को उक्त आरोपों के आधार पर पदच्युत करने की अनुशंसा की है।
राष्ट्रीयअल्पसंख्यकआयोग
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 के द्वारा केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की है।आयोग का मुख्य कार्य केंद्र तथा राज्य सरकारोँ के अधीन अल्पसंख्यकों के विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना और अल्पसंख्यको के सामाजिक आर्थिक तथा शैक्षणिक विकास से संबंधित विषय पर उत्पन्न समस्या से सरकार को अवगत कराना है।
आयोगकेकार्य
संविधान प्रदत्त अल्पसंख्यकों के लिए रक्षोपायो और संसद और राज्य विधानमंडलों द्वारा बने कानून के कार्यान्वयन का संचालन करना।संघ और राज्योँ के अधीन अल्पसंख्यको की उन्नति के लिए किए गए विकास कार्योँ का मूल्यांकन तथा अल्पसंख्यक के हितों की रक्षा के प्रभावकारी कार्यान्वयन के लिए केंद्र तथा राज्य सरकार को सुझाव देना।
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राष्ट्रीयबालसंरक्षणआयोग
23 फरवरी, 2007 को बच्चों को अत्याचार तथा उत्पीड़न से बचाने के लिए राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग का गठन कर दिया गया। आयोग का पहला अध्यक्ष मैग्सेसेअवार्डविजेता शांता सिन्हा को बनाया गया इसमेँ छह सदस्य होंगे। इसका कार्यकाल तीन वर्ष का होगा।बाल अत्याचार और बाल अपराध रोकने मेँ आयोग की मुख्य भूमिका होगी। इसे सिविल न्यायालय की तरह अधिकार होंगे। इसका स्वरुप राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की तरह होगा।आयोग के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं –यह बच्चो को आतंकवाद, सांप्रदायिक हिंसा, प्राकृतिक आपदा व घरेलू हिंसा से बचाने के लिए काम करेगा।बच्चो का शोषण व उन पर अत्याचार न हो, इसका ध्यान रखेगा।आयोग बाल अधिकारोँ से जुड़े किसी भी मामले की जांच कर सकता है। साथ ही, राज्य सरकारोँ व पुलिस को निर्देश जारी कर सकता है। इसके पास बच्चों को सताने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ सम्मन, नोटिस जारी करने का अधिकार होगा।
केंद्रीयसूचनाआयोग
इस कानून के क्रियान्वयन शिवम संरक्षण के लिए केंद्र मेँ केंद्रीय सूचना आयोग का गठन किसने अधिनियम के अंतर्गत किया गया है।केंद्रीय सूचना आयोग निम्नलिखित से मिलकर गठित हुआ है-मुख्य सूचना आयुक्त औरकुछ केंद्रीय सूचना आयुक्त जो कि 10 से सबसे अधिक न हो, जैसा की आवश्यक हो।मुख्य सूचना आयुक्त और अन्य आयुक्तोँ की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी जो कि एक समिति की सिफारिश पर होगी। इस समिति मेँ होंगे –प्रधानमंत्री, जो कि इस समिति का अध्यक्ष होगा।लोक सभा के विपक्ष का नेता, औरएक कैबिनेट मंत्रीमुख्य सूचना आयुक्त और अन्य आयुक्तों को कथित व्यव्हार या अक्षमता के आधार पर जांच के बाद राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है।राज्यसूचनाआयोग- सभी राज्य सरकार एकराज्यसूचनाआयोग का गठन करेंगें।
सूचनाआयोगकेकार्यएवंशक्तियां
केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग का कार्य किसी व्यक्ति द्वारा प्राप्त शिकायतोँ की जांच करना।ऐसा व्यक्ति जो किसी कारण से इस अधिनियम के तहत लोक सुचना अधिकारी की नियुक्ति न हो पाने के कारण आवेदन संलग्न करने मेँ अक्षम है।इस अधिनियम के तहत नियम के तहत आवेदित सूचना पहुंच को मना करने पर।अधिनियम के तहत किसी व्यक्ति को समय के अंदर सूचना आवेदन पर समुचित अनुक्रिया न करने पर।
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राष्ट्रीय भाषायी अल्पसंख्यक आयोग
इस आयोग का गठन संविधान के 7वें संशोधन के द्वारा वर्ष 1957 मेँ किया गया था। इसका मुख्यालय इलाहाबाद मेँ है।वर्तमान मेँ भाषायी अल्पसंख्यकोँ की संख्या मेँ निरंतर वृद्धि हो रही है, जिनकी देश की कुल जनसंख्या मेँ लगभग 16 प्रतिशत की भागीदारी है।
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अनुसूचितजातिवजनजातिआयोग
संविधान के अनुच्छेद 338 (1) मेँ व्यवस्था है कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए एक आयोग बनाया जाएगा, जो अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के राष्ट्रीय आयोग के नाम से जाना जाएगा। आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा।आयोग अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए संविधान या अन्य विधियों के अधीन उपबंधित रक्षापायों के क्रियान्वयन के संबंध मेँ राष्ट्रपति को प्रतिवर्ष या ऐसे अन्य समयों पर जो आयोग उचित समझे, प्रतिवेदन देगा। राष्ट्रपति ऐसे प्रतिवेदन को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा।अनुच्छेद 339 (1) के अनुसार राष्ट्रपति आयोग की नियुक्ति आदेश द्वारा किसी भी समय कर सकेगा और इस संविधान के प्रारंभ से 10 साल की समाप्ति पर करेगा। आदेश आयोग मेँ आयोग की संरचना, शक्तियां और प्रक्रिया परिनिश्चित की जा सकेगी और उसमेँ एसे आनुषंगिक या सहायक उपबंध शामिल हो सकेंगे जिन्हें राष्ट्रपति आवश्यक या वांछनीय समझे।केंद्र सरकार ने प्रशासकीय निर्णय के तहत गृह विभाग के 21 जुलाई, 1978 के एक प्रस्ताव द्वारा बहुसदस्यीय राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग का गठन, अगस्त 1984 मेँ किया।1990 मेँ 65वें संविधान संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 338 मेँ संशोधन करके अधिकारी की जगह एक आयोग के गठन का प्रावधान किया गया।राष्ट्रीय अनुसूचित जाति तथा जनजाति के एक आयोग के एक अध्यक्ष तथा एक उपाध्यक्ष तथा 5 सदस्य होते हैं। आयोग के मुख्य कार्य निम्नलिखित है –अनुसूचित जाति और जनजाति की शिकायतोँ की जांच करना तथा इस वर्ग के लिए जितने भी संवैधानिक प्रावधान है, उनका परीक्षण करना।इन जातियों के लोगोँ के सामाजिक और आर्थिक विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना तथा इसके लिए इन्हें जागरुक करना और विकास की प्रक्रिया मेँ शामिल करना।इन जाति के सदस्यों के संरक्षण के कार्यों पर प्रतिवर्ष राष्ट्रपति को रिपोर्ट देना।उपर्युक्त के अलावा 5वीं और 6वीं अनुसूची के प्रावधानों के क्रियान्वयन की दिशा में कार्य करना।फ़रवरी 2014 को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग को दो आयोगों मेँ विभाजित कर दिया गया।
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अनुसूचितजनजातिआयोग
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के नियम को जनजातीय कार्य मंत्रालय ने जारी किया और 20 फरवरी 2004 को इसके का गठन की अधिसूचना जारी की।आयोग का कार्यकाल 3 साल निर्धारित किया गया।आयोग के अध्यक्ष का दर्जा केंद्र के मंत्रिमंडलीय मंत्री, उपाध्यक्ष का दर्जा केंद्र के राज्य मंत्री तथा सदस्य का दर्जा केंद्र सरकार के सचिव के समकक्ष रखा गया है।
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अनुसूचितजातिआयोग
विभाजन के पश्चात सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 20 फरवरी, 2014 को अनुसूचित जाति आयोग के गठन के नियमों को जारी किया।प्रथम अनुसूचित जाति आयोग का गठन सूरजभान की अध्यक्षता मेँ किया गया। फकीर भाई बघेला को आयोग का उपाध्यक्ष तथा फूलचंद वर्मा, वीं देवेंद्र और सुरेखा लांबतूरे को सदस्य नियुक्त किया गया।आयोग के अध्यक्ष का दर्जा केंद्र के मंत्रिमंडलीय मंत्री, उपाध्यक्ष का दर्जा केंद्र के राज्य मंत्री तथा सदस्य का दर्जा केंद्र सरकार के सचिव के समकक्ष रखा गया है।
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