Wednesday, 7 December 2016

आपात उपबंध Emergency Provisions

आपात उपबंध Emergency Provisions

संवैधानिकप्रावधान

भारतीय संविधान मेँ तीन प्रकार के आपातकाल की व्यवस्था की गई है,राष्ट्रीय आपात - अनुच्छेद 352राष्ट्रपति शासन - अनुच्छेद 356वित्तीय आपात - अनुच्छेद 360

राष्ट्रीय आपात, अनुच्छेद 352 -  इसकी घोषणा युद्ध वाह्य आक्रमण और सशस्त्र विद्रोह मेँ से किसी भी आधार पर राष्ट्रपति के द्वारा की जा सकती है।राष्ट्रपति आपात की घोषणा राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की लिखित सिफारिश पर करता है।राष्ट्रपति आपात की उदघोषणा को न्यायालय में प्रश्नगत किया जा सकता है।44 वेँ संशोधन द्वारा अनुच्छेद 352 के अधीन उद्घोषणा संपूर्ण भारत मेँ या उसके किसी भाग मेँ की जा सकती है।राष्ट्रीय आपात के समय राज्य सरकार निलंबित नहीँ की जाती है, अपितु वह संघ की कार्यपालिका के पूर्ण नियंत्रण मेँ आ जाती है।राष्ट्रपति द्वारा की गई आपकी खोज एक माह तक प्रवर्तन मेँ रहती है और यदि इस दौरान इसे संसद के दो तिहाई बहुमत से अनुमोदित करवा लिया जाता है, तो वह 6 माह तक प्रवर्तन मेँ रहती है और यदि इसे संसद के दो तिहाई बहुमत से अनुमोदित करवा लिया जाता है, तो वह 6 माह तक प्रवर्तन में रहती है। संसद इसे पुनः एक बार में 6 महीने तक बाधा सकती है।

यदि लोकसभा साधारण बहुमत से आपात उद्घोषणा को वापस लेने का प्रस्ताव पारित कर देती है, तो राष्ट्रपति को उद्घोषणा को वापस लेनी पड़ती है।आपात उद्घोषणा पर विचार करने के लिए लोकसभा का विशेष अधिवेशन जब आहूत किया जा सकता है, जब लोकसभा की कुल सदस्य संख्या 1/10 सदस्योँ द्वारा लिखित सूचना लोकसभा अध्यक्ष को, जब सत्र चल रहा हो या राष्ट्रपति को, जब तक नहीँ चल रहा हो, दी जाती है।यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है (यदि राष्ट्रपति इस बात से संतुष्ट हो जाता है) कि युद्ध, वाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण देश की सुरक्षा संकट मेँ है तो वह संपूर्ण भारत या उसके किसी भाग मेँ राष्ट्रीय आपात उद्घोषित कर सकता है।युद्ध या वाह्य आक्रमण के आधार पर लगाए गए आपात को वाह्य आपात के नाम से तथा स्वास्थ्य विद्रोह के आधार पर लगाए गए आपात को आंतरिक आपात के नाम से जाना जाता है।संघ के मंत्रिमंडल की लिखित सलाह के बाद ही राष्ट्रपति द्वारा आपात की उद्घोषणा की जा सकती है।एक माह के अंदर संसद के दोनो सदनोँ द्वारा विशेष बहुमत द्वारा आपात की उद्घोषणा का अनुमोदन होना चाहिए (उपस्थित मत देने वाले सदस्योँ का कम से कम दो तिहाई और कुल सदस्य संख्या का बहुमत)।यह आपात उद्घोषणा दूसरे सदन द्वारा संकल्प पारित किए जाने की तारीख 6 मास की अवधि तक प्रवर्तन मेँ रहैगी, परंतु इसको असंख्य बार विस्तारित किया जा सकता है, प्रत्येक प्रत्येक बार केवल 6 मास की अवधि के लिए।आपात, राष्ट्रपति द्वारा किसी समय हटाया जा सकता है। लोकसभा, आपात को समाप्त करने के लिए साधारण बहुमत द्वारा संकल्प पारित कर आपात को हटा सकती है।लोकसभा अध्यक्ष या राष्टपति सूचना प्राप्ति के 14 दिनोँ के अंदर लोकसभा का विशेष अधिवेशन आहूत करते हैं।

राष्ट्रीयआपातकादुरुपयोगरोकनेकेलिएसंविधानमेँउपबंध

इन उपबंधोँ मेँ अधिकांशतः 44 वेँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा अनुच्छेद 352 मेँ संशोधन कर लाए गए हैं।पहले राष्ट्रीय आपात, युद्ध या वाह्य आक्रमण या आंतरिक अशांति के आधार पर लगाया जा सकता था। 44वेँ संविधान संशोधन अधिनियम नेआंतरिकअशांति की जगह सशस्त्रविद्रोह का प्रावधान कर दिया है।राष्ट्रपति द्वारा आपात की उद्घोषणा करने के लिए संघ मंत्रिमंडल की लिखित राय जरुरी है।संसद द्वारा एक अनुमोदन के बाद क्या केवल 6 माह तक प्रवर्तन मेँ रह सकता है लोक सभा द्वारा साधारण बहुमत से पारित एक संकल्प द्वारा इसे समाप्त किया जा सकता है।एक माह के अंदर संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत द्वारा इसका अनुमोदन जरुरी है (पहले यह दो माह और साधारण बहुमत था।पहले सभी प्रकार के आपात मेँ अनुच्छेद 19 स्वतः मेँ निलंबित हो जाता था। लेकिन अब केवल वाह्य आपात की दशा मेँ ही अनुछेद 19 स्वतः निलंबित होता है।अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 12 वाह्य आपातकाल मेँ भी निलंबित नहीँ हो सकता है।

राष्ट्रीयआपातकाप्रभाव

कार्यपालिकाकाप्रभाव- केंद्र किसी विषय पर राज्योँ को निर्देश दे सकता है। परन्तु राज्य सरकार बर्खास्त या निलंबित नहीँ की जाती है।विधायी प्रभाव - संसद को राज्य सूची के विषय पर समवर्ती शक्ति मिल जाती है। अर्थात राज्य सूची के किसी विषय पर संसद विधान बना सकती है। राज्य विधानसभा बर्खास्त या निलंबित नहीँ की जाती है और यह अस्तित्व मेँ रहती है तथा राज्य विषयों पर प्रावधान बनाना जारी रखती है।संसद विधि द्वारा लोक सभा तथा राज्य विधानसभा की अवधि सामान्य पांच वर्ष की अवधि से एक बार मेँ एक वर्ष से अधिक के लिए बढ़ा सकती है।वित्तीयसंबंधोपरप्रभाव – केंद्र, राज्योँ के साथ वित्तीय संसाधनोँ के वितरण को निलंबित कर सकता है।

मूलअधिकारोँपरप्रभाव

अनुछेद 20 और अनुच्छेद 21 कभी निलंबित नहीँ होते हैं।अनुच्छेद 19 वाह्य आपात की दशा मेँ स्वतः निलंबित हो जाता है और आंतरिक आपात की दशा मेँ एक पृथक उद्घोषणा द्वारा निलंबित किया जा सकता है।अन्य सभी मूल अधिकार, राष्ट्रपति की पृथक, उद्घोषणा द्वारा निलंबित किए जा सकते हैं।

आपातकाल की उद्घोषणा के प्रभाव

जब कभी संविधान के अनुछेद 352 के अंतर्गत आपातकाल उद्घोषणा होती है, तो उसके ये प्रभाव होते हैंराज्य की कार्यपालिका शक्ति संघीय कार्यपालिका शक्ति के अधीन हो जाती है।संसद की विधायी शक्ति राज्य सूची से संबद्ध विषयों तक विस्तृत हो जाती है।संविधान के अनुच्छेद 19 मेँ दी गई स्वतंत्रताएं स्थगित हो जाती हैं।राष्ट्रपति को यह अधिकार प्राप्त हो जाता है, किस संविधान के अनुच्छेद 20-21 मेँ उल्लिखित अधिकारोँ के क्रियान्वयन के लिए न्यायपालिका की शरण लेने के अधिकार को स्थगित कर दें।अनुच्छेद 352 के अधीन वाह्य आक्रमण के आधार पर प्रथम आपात की घोषणा चीनी आक्रमण के समय 26 अक्टूबर, 1962 ईं को की गई थी। यह उद्घोषणा 10 जनवरी 1968 को वापस ले ली गयी।दूसरी बार आपात की उदघोषणा 3 दिसंबर, 1971 ईं को पाकिस्तान से युद्ध के समय की गई (वाह्य आक्रमण के आधार पर)।

राज्य मेँ राष्ट्रपति शासन

अनुच्छेद 356 के अधीन राष्ट्रपति किसी राज्य मेँ यह समाधान हो जाने पर कि राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो गया है अथवा राज्य संघ की कार्यपालिका के किन्हीं निर्देशों का अनुपालन करने मेँ असमर्थ रहता है, तो आपात स्थिति की घोषणा कर सकता है।राज्य मेँ आपात की घोषणा के बाद संघ न्यायिक कार्य छोडकर राज्य प्रशासन के कार्य अपने हाथ मेँ ले लेता है।राज्य में आपात की उद्घोषणा की अवधि 2 मास होती है। इससे अधिक के लिए संसद से अनुमति लेनी होती है, तब यह 6 माह की होती है। अधिकतम 3 वर्ष तक यह एक राज्य के परिवर्तन में रह सकती है। इससे अधिक के लिए संविधान मेँ संशोधन करना पडता है।सर्वप्रथम पंजाब राज्य मेँ अनुच्छेद 356 का प्रयोग किया गया (जो 1951 में भार्गव मंत्रिमंडल के पतन का कारण बना)।सर्वाधिक समय तक अनुच्छेद 356 का प्रयोग पंजाब राज्य मेँ ही रहा - 11 मई, 1987 से 25 फरवरी, 1992 तक।अनुच्छेद 356 का जनवरी 2002 ईं तक 115 बार प्रयोग किया गया है।

राज्य मेँ आपात स्थिति - अनुच्छेद 356

राज्यपाल के प्रतिवेदन पर या अन्यथा, यदि राष्ट्रपति संतुष्ट हो जाता है, कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमेँ राज्य की सरकार संविधान के उपबंधोँ के अनुसार नहीँ चल सकती है, तो वह राज्य सरकार के सभी कृत्य अपने हाथ मेँ ले सकता है और यह घोषित कर सकता है कि राज्य विधान मंडल की शक्तियोँ का प्रयोग संसद द्वारा किया जाएगा।ऐसी उद्घोषणा, 2 माह के अंदर संसद के दोनो सदनों द्वारा साधारण बहुमत द्वारा पारित होनी चाहिए। अनुमोदन के बाद यह, यह उद्घोषणा की तारीख से 6 मास की अवधि के लिए प्रवर्तन मेँ रहता है।संसद द्वारा अनुमोदन के बाद यह 6 मास की अवधि के लिए और विस्तारित किया जा सकता है।राष्ट्रपति शासन को एक वर्ष की इस समय अवधि के बाद अधिकतम 2 और वर्षो के लिए विस्तारित किया जा सकता है (परंतु एक बार मेँ केवल 6 माह के लिए), बशर्ते निम्नलिखित 2 शर्तें पूरी हो रही हों –संपूर्ण भारत मेँ या संपूर्ण राज्य मेँ या राज्य के किसी भाग मेँ आपात स्थिति लागू है।निर्वाचन आयोग यह प्रमाणित कर देता है कि राज्य विधानसभा के साधारण निर्वाचन कराने मेँ कठिनाई के कारण राष्ट्रपति शासन जारी रखना आवश्यक है।

राष्ट्रपति शासन का प्रभाव

कार्यपालिका पर - राज्य मंत्रिपरिषद बर्खास्त कर दी जाती है और इसके सभी कृत्यों का निर्वहन राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के निर्देश पर किया जाता है।

विधायिका पर - राज्य की विधानसभा बर्खास्त या निलंबित कर दी जाती है और संसद को राज्य विषय पर विधायी अधिकारिता प्राप्त हो जाती है।

अनुच्छेद 352 (राष्ट्रीय आपात) और अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) मेँ अंतर

राष्ट्रीय आपात मेँ केंद्र और सभी राज्योँ के मध्य संबंधों (केवल वही राज्य नहीँ जहां आपात स्थिति लागू है।) मेँ मूलभूत परिवर्तन आता है, जबकि राष्ट्रपति शासन मेँ केंद्र तथा केवल संबंधित राज्य के मध्य संबंध मेँ परिवर्तन आता है।राष्ट्रीय आपात मेँ राज्य मंत्री परिषद अस्तित्व मेँ रहती है और अपने कर्तव्योँ का निर्वहन जारी रखती है, जबकि राष्ट्रपति शासन मेँ राज्य मंत्री परिषद बर्खास्त कर दी जाती है।राष्ट्रीय आपात मेँ राज्य विधान सभा कार्य करना जारी रखती है, जबकि ,राष्ट्रपति शासन मेँ यह बर्खास्त या निलंबित कर दी जाती है।राष्ट्रीय आपात मेँ मूल अधिकार प्रभावित होते हैँ, राष्ट्रपति शासन मेँ ऐसा कोई प्रभाव नहीँ पड़ता है।राष्ट्रीय आपात मेँ केंद्र और राज्योँ के मध्य वित्तीय संबंध प्रभावित हो सकते हैं, किंतु राष्ट्रपति शासन मेँ नहीँ।

न्यायिक पुनर्विलोकन एवं अनुच्छेद 356 (बोम्मई मामला, 1994 मेँ उच्चतम न्यायालय का मत)

उच्चतम यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 356 के तहत प्रदत्त राष्ट्रपति की शक्ति का न्यायिक पुनर्विलोकन किया जा सकता है। परन्तु यह समीक्षा निम्नलिखित 3 (समीक्षा) मामलोँ तक सीमित रहेगी-क्या कोई एसी सामग्री है जिसके आधार पर राष्ट्रपति ने अपनी राय बनाई है?क्या वह सामाग्री सुसंगत है?क्या राष्ट्रपति का कोई दुर्भावपूर्ण इरादा था?मामले की जांच करते समय न्यायालय वह सामग्री मांग सकता है जिसके आधार पर मंत्रिपरिषद ने राष्ट्रपति को राष्ट्रपति शासन लगाने की सलाह दी।तथ्य होने की, इसके सुसंगत होने की और राष्ट्रपति के सद्भावपूर्ण इरादे को साबित करने की जिम्मेदारी केंद्र की होगी।संसद द्वारा राष्ट्रपति शासन के अनुमोदन से पूर्व राज्य विधानसभा विघटित नहीँ की जाएगी।राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की शक्ति अर्थात (मंत्रिपरिषद को विधानसभा का विश्वास प्रस्ताव है या नहीँ) की जांच, विधानसभा की सलाह पर करनी चाहिए और उन्हें किसी व्यक्तिगत निष्कर्ष पर नहीँ पहुंचना चाहिए।प्रशासनिक तंत्र की विफलता राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए आधार नहीँ हो सकता है केवल संवैधानिक तंत्र की विफलता की दशा मेँ अनुच्छेद 356 का प्रयोग करना चाहिए।राष्ट्रपति शासन लागू करने से पूर्व केंद्र को संबंधित राज्य को चेतावनी देनी चाहिए। यदि न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि राष्ट्रपति शासन लागू करना, असंवैधानिकता था तो यह सरकार को पुनर्स्थापित कर सकता है और विघटित विधानसभा को पुनर्गठित कर सकता है।

वित्तीय आपात

अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपात की उदघोषणा राष्ट्रपति द्वारा तब की जाती है, जब उसे विश्वास हो जाए की ऐसी स्थिति विद्यमान है, जिसके कारण भारत के वित्तीय स्थायित्व या साख को खतरा है।वित्तीय आपात की घोषणा दो महीनों के भीतर संसद के दोनो सदनो के सम्मुख रखना तथा उनकी स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक है।यदि वित्तीय आपात की घोषणा उस समय की जाती है, जब लोकसभा विघटित हो, तो दो महीने के भीतर राज्य सभा की स्वीकृति मिलने के उपरांत वह आगे भी लागू रहेगी।किंतु नवनिर्वाचित लोक सभा द्वारा की प्रथम बैठक के आरंभ से 30 दिन के भीतर ऐसी घोषणा की स्वीकृति आवश्यक है।राष्ट्रपति वित्तीय आपात की घोषणा को किसी भी समय वापस ले सकता है।वित्तीय आपात का निम्नलिखित प्रभाव होता है –उच्चतम न्यायालय, उच्च यायालय के न्यायाधीशों तथा संघ एवं राज्य सरकारोँ के अधिकारियोँ के वेतन मेँ कमी की जा सकती है।राष्ट्रपति आर्थिक दृष्टि से किसी भी राज्य सरकार को निर्देश दे सकता है।राष्ट्रपति को यह अधिकार प्राप्त हो जाता है कि वह राज्य सरकारों को निर्देश दे कि राज्य के समस्त वित्त विधेयक उसकी स्वीकृति से विधान सभा मेँ प्रस्तुत किए जाएं।राष्ट्रपति केंद्र तथा राज्यों मेँ धन संबंधी विभाजन के प्रावधानोँ मेँ आवश्यक संशोधन कर सकते हैं।यदि राष्ट्रपति इस बात से संतुष्ट हो जाता है कि भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग का वितीय स्थायित्व संकट मेँ है तो वह देश मेँ वित्तीय आपात लागू कर सकता है।उद्घोषणा के 2 माह के अंदर यह संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित होना चाहिए और अनुमोदित होने के बाद यह तब तक जारी रहेगा जब तक राष्ट्रपति इसे वापस नहीँ लेता।

वित्तीय आपात के प्रभाव

राज्योँ के राज्यपालोँ को यह निर्देश दिया जा सकता है कि वे राज्य के सभी धन एवं वित्त विधेयकों को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित करेँ।राज्योँ को वित्तीय अनुशासन कायम करने के लिए कहा जा सकता है।केंद्र एवं राज्योँ के मध्य वित्तीय संशोधनों के विभाजन को निलंबित रखा जा सकता है।सभी संवैधानिक अधिकारियोँ के वेतन एवं भत्ते कम किए जा सकते हैं।

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