Tuesday, 28 February 2017

राजनीति लोहिया ने कहा, ‘‘जो संख्या में अधिक हैं उन्हें समाज का नेतृत्व करना चाहिये।’’ उनका यह तर्क सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग की इच्छाओं के विरुद्ध सबसे आदर्श लोकतांत्रित तर्क था। हालांकि वे अपनी पिछड़ों की राजनीति की सफलता को देखने के लिये अधिक समय तक जीवित नहीं रहे लेकिन 90 के दशक के प्रारंभ में मंडल आयोग के लागू होने के साथ ही एक ऐसा नेतृत्व सामने आया जो हर मामले में बिल्कुल अलग था। भाषा का गिरता स्तरराजनारायण अपनी अभद्र भाषा के चलते कई बार स्पीकर द्वारा विधानसभा से बाहर किए गए.लोकतंत्र का गिरता स्तर
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान में नेताओं के बीच एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने की होड़ जिस तरह बढ़ती जा रही है उससे भारतीय लोकतंत्र की मान-मर्यादा को आघात ही लग रहा है। सूचना क्रांति के इस युग में अब नेताओं की कोई भी टिप्पणी जनता की निगाह से छिप नहीं सकती। बावजूद इसके वे किसी तरह का संयम दिखाने के लिए तैयार नहीं दिखते। नेताओं के चुनावी भाषण एक-दूसरे को चुनौती देने, तरह-तरह के आरोप लगाने और व्यक्तिगत आक्षेप करने तक सीमित रह गए हैं। नीतियों और मुद्दों की चर्चा तो बहुत दूर की बात हो गई है। चूंकि चुनाव के समय जनता का एक बड़ा वर्ग नेताओं के इस तरह के बयानों के प्रति रुचि प्रदर्शित करता है इसलिए मीडिया भी उन्हें महत्व देने से परहेज नहीं करता। वैसे भी जनता को यह जानने का अधिकार है कि उसके प्रतिनिधि होने का दावा करने वाले नेताओं के तौर-तरीके क्या हैं? अपने देश में फिलहाल ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिससे जनता को प्रत्याशी की उन क्षमताओं के बारे में पता नहीं किसका पक्ष सही है, लेकिन जो कुछ स्पष्ट है वह यह कि हमारे देश की राजनीति का स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है। मुश्किल यह है कि गिरावट का दौर थमता नहीं दिख रहा। राजनीतिक दल विरोधियों को नीचा दिखाने के लिए गड़े मुर्दे उखाड़ने और उनके जरिये सनसनीखेज आरोप लगाने का काम कर रहे हैं। हाल के दिनों में कई नेताओं के खिलाफ ऐसे आरोप उछाले गए हैं जिनका इस्तेमाल पहले भी किया जा चुका है। ऐसे माहौल में यह आवश्यक हो गया है कि राजनीतिक दल इस पर विचार करें कि बयानबाजी का स्तर कैसे सुधारा जाए? केवल चुनाव के समय ही नहीं, बल्कि सामान्य अवसरों पर भी राजनेताओं के लिए अपने भाषणों में संयम और शालीनता का परिचय देना आवश्यक है। इसमें संदेह नहीं कि चुनाव के समय नेताओं के बीच गर्मागर्मी बढ़ जाती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे अपने भाषणों में मर्यादा की दीवार ही गिरा देंकई देशों में लोकतंत्र ने इसीलिए मजबूती हासिल की है, क्योंकि वहां राजनीति के प्रत्येक स्तर पर पारदर्शिता को सर्वाधिक महत्व दिया गया है। अमेरिका जैसे देशों में चुनाव प्रणाली बड़ी हद तक प्रत्याशियों के बीच सीधी बहस पर आधारित है। दुर्भाग्य से भारत में राजनीतिक वर्ग इससे बचता नजर आ रहा है

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