Sunday, 12 February 2017

क्या एलीयन है ? क्या वे पृथ्वी पर आते है?

 एलीयन है ? क्या वे पृथ्वी पर आते है?

 

 

 

 

 

 

एलीयन-यु एफ़ ओ

यह प्रश्न अक्सर सामने आते रहता है कि क्या पृथ्वी के बाहर जीवन है?

यदि पृथ्वी के बाहर जीवन है तो क्या उस जीवन मे मानव जैसे बुद्धिमान जीवन की उपस्थिति है?

सारे विश्व मे UFO/उड़नतश्तरी के दिखायी देने की अफवाहे/तथाकथित समाचार सामने आते रहते है। हालीवुड की फिल्मो मे भी एलीयन/परग्रही एक प्रमुख कथानक रहता है, इन फ़िल्मो मे उन्हे अधिकतर ऐसे खलनायको के रूप मे प्रस्तुत किया जाता है जिनका मकसद पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनो(जल/स्वर्ण/खनिज) का उपभोग करना या मानव जाति को अपनी गुलाम जाति के रूप मे प्रयोग करना है।

क्या एलीयन/परग्रही जीवो का अस्तित्व है ?

वर्तमान विज्ञान के अनुसार पृथ्वी के बाहर जीवन ना पनपने का कोई कारण नही है। पृथ्वी या सौर मंडल मे ऐसी कोई विशेषता नही है कि केवल पृथ्वी पर ही जीवन की संभावना हो।

वैज्ञानिकों का मानना है कि बाह्य अंतरिक्ष में भी जीवन की उत्पत्ति और विकास के लिए सामग्री और परिस्थितियां मौजूद हैं। हमारी आकाशगंगा में करीब 200 अरब तारे हैं, जिनमें हमारा सूर्य एक सामान्य तारा है। आकाशगंगा की चौड़ाई एक लाख प्रकाश वर्ष तथा मोटाई करीब 20 हजार प्रकाश वर्ष है। हमारा सूर्य भी आकाशगंगा के केंद्र भाग में नहीं है। यह केंद्र से करीब 30 हजार प्रकाश वर्ष दूर है और निरंतर आकाशगंगा में चक्कर लगाता रहता है। ब्रह्मांड में ऐसी और इससे भिन्न अरबों आकाशगंगाये हैं। हमारी आकाशगंगा के परे दूसरी बड़ी आकाशगंगा देवयानी हमसे करीब 20 लाख प्रकाश वर्ष दूर है। ब्रह्मांड की अति दूरस्थ आकाशगंगाये हमसे लगभग 10 अरब प्रकाश वर्ष दूर हैं।

तो इस विशाल ब्रह्मांड में क्या पृथ्वी के अलावा सर्वत्र निर्जीव है? जिन तत्वों से धरती की चीजों का निर्माण हुआ है वे कमोबेश समूचे ब्रह्मांड में पाए जाते हैं। भौतिक विज्ञान के जो नियम पृथ्वी की वस्तुओं पर लागू होते हैं वहीं नियम अति दूरस्थ पिंडों के पदार्थ पर भी लागू होते हैं। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि केवल धरती पर ही जीवन की उत्पत्ति और विकास संभव है। ब्रह्मांड के अन्य पिंडों पर जीवन का हमसे भी अधिक उन्नत सभ्यताओं का अस्तित्व संभव है।

ड्रेक समीकरण

आकाशगंगा में उन्नत सभ्यताओं की गणना करने के लिए कॉलेज, विश्वविद्यालय यूएसए के खगोलवेता फ्रैंक ड्रेक ने एक समीकरण प्रस्तुत किया है, जिसे इसे ड्रेक समीकरण कहते हैं। आकाशगंगा में तारों के जन्म की औसत दर, तारों के ग्रह मंडल, ग्रहमंडलों की संख्या, जीवन को धारण करने योग्य ग्रहों की संख्या, उन्नत तकनीक वाले प्राणियों को जन्म दे सकने वाले ग्रहों की संख्या, उन्नत सभ्यातओं का जीवनकाल आदि बातों की गणना कर इस ड्रेक समीकरण की मदद से आकाशगंगा में जीवन की व्यापकता का पता लगाया जाता है। वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि आकाशगंगा के 200 अरब तारों में हमारे सूर्य जैसे लाखों करोड़ों तारे हैं इसलिए अपने तारे (सूर्य) को हम अद्वितीय नहीं मान सकते। विख्यात खगोल शास्त्री तथा लोकप्रिय विज्ञान प्रस्तोता कार्ल सागन ने इस समीकरण की चर्चा इतनी बार की है कि इसे कार्ल सागन का समीकरण भी कहा जाने लगा है।

सन 1961 में फ्रैंक ड्रेक ने प्राप्त तथ्यों के आधार पर अनुमान लगाया कि हमारी आकाशगंगा में ही करीब 10,000 ग्रहों में जीवन सम्भव है। उस समीकरण के 40 साल बाद सन 2001 में ड्रेक की पद्धति में और सुधार करके फिर समीकरण बनाया गया तो कहा गया कि हजारों नहीं लाखों ग्रहों में जीवन सम्भव है।

अर्थात पृथ्वी पर जीवन है तो अन्यत्र भी जीवन होगा। हमारे पहले प्रश्न का उत्तर है कि एलीयन का आस्तित्व संभव है।

क्या परग्रही/एलीयन पृथ्वी पर आते है?

क्या वे पृथ्वी पर फ़िल्मों मे दिखाये अनुसार आक्रमण कर सकते है?

UFO

शायद नही। तारों के मध्य दूरी अत्याधिक होती है। सूर्य के सबसे निकट का तारा प्राक्सीमा सेंटारी 4 प्रकाश वर्ष दूर है, उससे प्रकाश को भी हम तक पहुँचने मे 4 वर्ष लगते है। प्रकाश की गति अत्याधिक है, वह एक सेकंड मे लगभग तीन लाख किमी की यात्रा करता है। तुलना के लिये सूर्य से पृथ्वी तक प्रकाश पहुँचने केवल आठ मिनट लगते है। कई प्रकाश वर्ष की दूरी तय करने के लिये इतनी दूरी तक यात्रा करने मे वर्तमान के हमारे सबसे तेज राकेट को भी सैकड़ों वर्ष लगेंगे।

ऐसी लंबी यात्रा मे ढेर सारी अड़चने है, जिसमे कई वर्षो की इतनी लंबी यात्रा मानव या किसी भी अन्य बुद्धिमान जीव के लिये आसान नही होगी। यात्रा मे लगने वाले यान के निर्माण मे ढेर सारी प्रायोगिक मुश्किले आयेंगी, जैसे इस यान मे इस लंबी यात्रा के लिये राशन, पानी, कपड़े , ऊर्जा का इंतज़ाम करना होगा। यान मे कई वर्षो की भोजन सामग्री ले जाना संभव नही होगा, ऐसी स्थिति मे यान मे ही कृषि, पेड़, पौधे उगाने की व्यवस्था करनी होगी। विशाल यान के संचालन तथा यात्रीयों के प्रयोग के ऊर्जा के निर्माण के लिये बिजली संयत्र का निर्माण करना होगा। यान मे वायु से विषैली गैस जैसे कार्बन डाय आक्साईड को छान कर आक्सीजन के उत्पादन मे संयत्र चाहीये होंगे। प्रयोग किये गये जल के पुनप्रयोग के लिये संयत्र, उत्पन्न कचरे के पुनप्रयोग के लिये संयत्र चाहिये होंगे। इन सभी संयंत्रो के यान मे लगाने पर वह किसी छोटे शहर के आकार का हो जायेगा। इतना बड़ा यान पृथ्वी या ग्रह पर निर्माण कर अंतरिक्ष मे भेजना भी आसान नही है, इस आकार के यान का निर्माण भी अंतरिक्ष मे ही करना होगा।

विज्ञान फ़तांशी धारावाहिक “स्टार ट्रैक” का यान

इतने विशाल यान का निर्माण हो भी जाये तो इस यान के अंतरिक्ष यात्रीयों को मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार करना होगा। यान के अंतरिक्षयात्रीयों के दल मे हर क्षेत्र से विशेषज्ञ चूनने होगे जिसमे इंजीनियर, खगोलशास्त्री, चिकित्सक इत्यादि प्रमुख होंगे। यदि यात्रा समय 30-40 वर्ष से अधिक हो तो इन यात्रीयों मे स्त्री-पुरुष जोड़ो को भेजना होगा जिससे इतनी लंबी यात्रा मे नयी यात्रीयों की नयी पिढी तैयार हो और वह इस यात्रा को आगे बढ़ाये। इस अवस्था मे यान मे पाठशाला और शिक्षक भी चाहीये होंगे।

लंबी यात्रा की इन सब परेशानीयो को देखते हुये यह स्पष्ट है कि पारंपरिक तरिके के यानो से अन्य तारामंडलो की यात्रा अत्याधिक कठीन और चुनौति भरी है। इस कठीनायी का हल है प्रकाशगति या उससे तेज गति के यानो का निर्माण। ध्यान रहे कि प्रकाशगति से तेज चलने वाले यान भी सबसे निकट के तारे से आवागमन मे कम से कम 8 वर्ष लेंगे, जबकि अंतरिक्ष मे दूरीयाँ सैकड़ो, हजारो या लाखो प्रकाशवर्ष मे होती है।

प्रकाश गति से तेज यान

प्रकाशगति से तेज यात्रा मे सबसे बड़ी परेशानी यह है कि वैज्ञानिक नियमो के अनुसार प्रकाश गति से या उससे तेज यात्रा संभव नही है। यह आइंस्टाइन के सापेक्षतावाद के सिद्धांत का उल्लंघन है जिसके अनुसार प्रकाशगति किसी भी कण की अधिकतम सीमा है। कोई भी वस्तु जो अपना द्रव्यमान रखती है वह प्रकाशगति प्राप्त नही कर सकती है; उसे प्रकाशगति प्राप्त करने अनंत ऊर्जा चाहिये जोकि संभव नही है।

मान लेते है कि किसी तरह से सापेक्षतावाद के इस नियम का तोड़ निकाल लिया गया और प्रकाश गति से यात्रा करने वाला यान बना भी लिया गया। इस अवस्था मे समय विस्तार (Time Dilation) वाली समस्या आयेगी। हम जानते है कि समय कि गति सर्वत्र समान नही होती है। प्रकाश गति से चलने वाले यान मे समय की गति धीमी हो जायेगी, जबकि पृथ्वी/एलीयन ग्रह पर समय की गति सामान्य ही रहेगी। प्रकाश गति से चलने वाला यान को पृथ्वी से प्राक्सीमा सेंटारी तक पहुँचने मे 4 वर्ष लगेंगे लेकिन पृथ्वी पर सदियाँ बीत जायेंगी।

इन सभी प्रायोगिक कारणों से एलीयन का पृथ्वी पर आना संभव नही लगता है।

वर्महोल द्वारा यात्रा

वर्महोल

एक अन्य उपाय है वर्महोल से यात्रा। वर्महोल ऐसे सैद्धांतिक शार्टकट है जो अंतरिक्ष के दो बिंदुओं को जोड़ते है। इनकी आस्तित्व प्रमाणित नही है लेकिन ये सैद्धांतिक रूप से संभव है। इसके द्वारा किसी भी दूरी की यात्रा पलक झपकते संभव है। आप किसी वर्महोल के एक छोर से प्रवेश करे और पलक झपकते ही आप किसी अन्य आकाशगंगा या किसी अन्य तारामंडल मे जा सकते है। हमारे पास ऐसे वर्महोल बनाने की तकनिक नही है। मानव सभ्यता को वर्महोल बनाने की तकनिक प्राप्त करने के लिये अभी हजारो या लाखों वर्ष का तकनीकी विकास करना होगा।

इस तरह के शार्टकट का निर्माण करने वाली सभ्यता हमसे हज़ारों नही लाखो करोड़ों वर्ष आगे होगी। इतनी विकसीत सभ्यता पृथ्वी मे क्यों दिलचस्पी लेगी ? उनके लिये तो हम एक आदिम/पाषाण युग के जीव होंगे। उन्हे हमारी किसी भी वस्तु( मे कोई दिलचस्पी नही होगी क्योंकि वे हर वस्तु का निर्माण चुटकियों मे करने मे सक्षम होंगे। अंतरिक्ष मे खनिज संसाधन, जल, स्वर्ण जैसी चीजो की कमी नही है, वे तो उन्हे ऐसे ही प्राप्त कर सकेंगे। मानव को गुलाम जाति बनाने की भी उन्हे कोई आवश्यकता नही होगी क्योंकि उनके पास उनके हर काम करने के लिये रोबोटो की फौज होगी।

वर्महोल का निर्माण कर सकने वाली विकसित सभ्यता के लिये हम किसी कीड़े मकोड़े से अधिक नही होंगे। आप स्वयं सोचे कि क्या आपकी किसी दिमक के ढुंह पर, या चिंटीयाँ के समूह पर कोई दिलचस्पी होती है? क्या आप उनपर आक्रमण करने की सोचते है ?

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