Thursday, 2 February 2017

भारत की सर्वाधिक संकटग्रस्त प्रजाति 

यदि पूछा जाए कि भारत की सर्वाधिक संकटग्रस्त प्रजातियाँ कौन है ? तो निस्संदेह रूप से, इस प्रश्न के  उत्तर में ‘ ग्रेट इंडियन बस्टर्ड ‘ (Great Indian Bustard-GIB) शामिल है | ध्यातव्य है, कि भारत की 1.3 बिलियन जनसंख्या में से कुछ ही लोग इस पक्षी के नाम से परिचित है |

प्रमुख बिंदु :

उल्लेखनीय है, कि भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाली ग्रेट इंडियन बस्टर्ड प्रजाति एक समय भारत एवं पाकिस्तान के घास के मैदानों व अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में भी विचरण करती थी |जहाँ वर्ष 1969 में इन पक्षियों की संख्या 1,200 थी वहीं आज राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक  में 250 से भी कम पक्षी जीवित हैं |विदित हो, कि राजस्थान में पक्षियों की आबादी सर्वाधिक है | एक आकलन के अनुसार, राजस्थान के जैसलमेर,बारमेर और बीकानेर जिलों में लगभग 150 पक्षी हैं |कच्छ (गुजरात)  में  30 से भी कम पक्षी पाए गए हैं | चूँकि, इनकी संख्या में  पहले की तुलना में 90 % की कमी दर्ज की गई थी अतः वर्ष 2011 में प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) द्वारा इस प्रजाति को ‘गंभीर संकटग्रस्त’ (Critically Endangered) की सूची में रखा गया था |समस्या यह है कि नीति निर्माताओं द्वारा इनके आवासों को नजरंदाज किया जाता है अतः ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को आवास सम्बन्धी कष्ट का सामना भी करना पड़ता है |ध्यातव्य है, कि वर्ष 1960 में प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सलीम अली ने यह अनुशंसा की थी कि ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को भारत का राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया जाए|हालाँकि, उनके सुझावों के पश्चात यह आशंका व्याप्त हो गई कि ‘बस्टर्ड’ शब्द को गलत तरीके से भी उच्चारित किया जा सकता है |सरकारी अभिलेखों में इसके अधिकांश अर्ध -शुष्क घास के मैदानी आवासों को बंजर भूमि की  श्रेणी में रखा गया है तथा प्रायः इन आवासों को विकासात्मक प्रोजेक्टों से दूर रखा जाता है|इस पक्षी के आवासों को कृषि तथा अवसंरचना प्रोजेक्टों के लिए प्रयोग में लाया जाता है| राजस्थान व गुजरात में इसके आवास उच्च तनाव वाले संचरण तारों के भय का सामना कर रहे हैं| यह ध्यान देने योग्य है कि इन तारों के टकराव के परिणामस्वरूप ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की मृत्यु होती है|‘परम्परागत’ से ‘नकदी’ में तेजी से परिवर्तित हो रहे फसल-स्वरूप और रासायनिक कीटनाशकों  के बढ़ते प्रयोग के कारण स्थानिकों के साथ कृषि भूमि को बांटना ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के लिए अनुपयुक्त सिद्ध हो रहा है |

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड :

उल्लेखनीय है, कि भारत में घास के मैदानों में पाया जाने वाला ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, को उड़ने वाले सबसे भारी पक्षी के रूप में जाना जाता है |गौरतलब है कि इनके प्रजनन के मौसम के दौरान मादा केवल एक अंडा देती है |यह पक्षी अत्यंत शर्मिला है | यदि इसे प्रजनन के मौसम में परेशान किया जाता है तो यह जल्दी ही उस क्षेत्र को छोड़ देता है |अतः यह सुनिश्चित करने के लिए कि इनके प्रजनन काल के दौरान कोई समस्या न आये तथा जब तक चूजा वयस्क न हो जाए,  इसे अत्यंत सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है |

वर्तमान स्थिति :

संयोगवश, वर्ष 2016 में राजस्थान और गुजरात में कुछ प्रजनन सफलताओं को देखा गया था |इसी वर्ष, सरकार ने  ‘लुप्तप्राय प्रजाति संवर्द्धन कार्यक्रम’ (Endangered species recovery programme) को प्रारंभ किया जिसमें ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के लिए एक प्रजनन केंद्र का संरक्षण करना भी शामिल था |यद्यपि, इस प्रस्ताव के लिए जिस धन का आवंटन केंद्र द्वारा राजस्थान सरकार को किया जाना था उस पर रोक लगा दी गई है | इस कारण, यह मुद्दा राजनीतिक अहंकार युद्ध और लाल-फीताशाही में फँस कर रह गया है |

निष्कर्ष :

यह जानना आवश्यक है, कि आज ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ मानव बहुल क्षेत्रों में विचरण करते हैं | ग्रेट इंडियन बस्टर्ड मुख्यतः  बेरीज (berries), छिपकली तथा छोटे साँपों के अलावा झींगुर, टिड्डे और अन्य कीड़ों का भोजन भी करते हैं अतः इस रूप में ये कृषकों के सहायक हैं | इसलिए  ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के लिए संरक्षण योजनाओं का सीधा सम्बन्ध परंपरागत किसानों के हित में है तथा मानव और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के इस सह-अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए चरागाह भूमि के संरक्षण की भी आवश्यकता है |

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