महासागरीय नितल के उच्चावच
November 28, 2014 ज्ञानिकी
13 अंकों में अविष्कार/खोज, 4 अंकों में राष्ट्रगान, 5 अंकों में संसद, 3 अंकों में मुद्राओं तथा 11 अंकों में धरातलीय आकृतियों के पश्चात अब ज्ञानिकी तहत पृथक-पृथक शीर्षकों में जानकारियां प्रदान की जा रही हैं। गत 7 अंकों में परिवहन के विभिन्न घटकों एवं जलमंडल पर जानकारी प्रस्तुत की गई थी। इस अंक में ‘महासागरीय नितल के उच्चावच’ (Relief of the Ocean Floor) पर जानकारी प्रस्तुत की जा रही है।
महासागर प्रथम श्रेणी का उच्चावच है। यह पृथ्वी के गहरे क्षेत्रों के रूप में वर्गीकृत है तथा इसमें पृथ्वी की विशाल जलराशि संचित है। महाद्वीपों के विपरीत महासागर एक दूसरे से स्वाभाविक रूप में इतने करीब हैं कि उनका सीमांकन करना कठिन हो जाता है। फिर भी भूगोलविदों ने पृथ्वी के महासागरीय भाग को पांच महासागरों में विभाजित किया है। जिनके नाम हैं- प्रशांत, अटलांटिक, हिंद, दक्षिणी एवं आर्कटिक।
जिस प्रकार स्थलीय भाग पर पर्वत, पठार व मैदान आदि पाए जाते हैं, उसी प्रकार महासागरीय नितल पर भी विभिन्न प्रकार की आकृतियां पाई जाती हैं।
महासागरीय नितल अथवा अधस्तल को चार प्रमुख भागों में बांटा जा सकता है-(i) महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf) (ii) महाद्वीपीय मग्नढाल (Continental Slope), (iii) गहरे समुद्री मैदान (Deep Sea Plain) तथा (iv) महासागरीय गर्त (Oceanic Deeps)।
महाद्वीपीय मग्नतट
यह महासागर का सबसे उथला भाग होता है जिसकी औसत प्रवणता 1 डिग्री या उससे भी कम होती है।महाद्वीपीय मग्नतटों की चौड़ाई में एक महासागर से दूसरे महासागर के बीच भिन्नता पाई जाती है।यहां पर अवसादों की मोटाई भी अलग-अलग होती है।यहां लंबे समय तक प्राप्त स्थूल तलछट अवसाद जीवाश्मी ईंधनों के स्रोत बनते हैं।समुद्र में जो भी प्राकृतिक गैसों एवं पेट्रोलियम के भंडार पाए गए हैं, उन सबका संबंध महाद्वीपीय मग्न तट से ही है।यह महासागरीय नितल के 8.6 प्रतिशत भाग पर फैले हैं।
महाद्वीपीय मग्नढाल
मग्नतट तथा सागरीय मैदान के बीच तीव्र ढाल वाले मंडल को ‘महाद्वीपीय मग्नढाल’ कहते हैं।इसकी ढाल प्रवणता मग्नतट के मोड़ के पास से सामान्यतः 4o से अधिक होती है।मग्नढाल पर जल की गहराई 200 मीटर से 3000 मीटर के बीच होती है।मग्नढाल समस्त सागरीय क्षेत्रफल के 8.5 प्रतिशत पर फैला है।मग्नढालों पर सागरीय निक्षेप का अभाव पाया जाता है।
गहरे समुद्री मैदान
गहरे समुद्री मैदान महासागरीय बेसिनों के मंद ढाल वाले क्षेत्र होते हैं।इनकी गहराई 3000 से 6000 मीटर तक होती है।समस्त महासागरीय क्षेत्रफल के 70 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र पर इनका विस्तार पाया जाता है। उल्लेखनीय है कि इनका विस्तार भिन्न-भिन्न महासागरों में भिन्न-भिन्न है।प्रशांत महासागर में इनका सर्वाधिक विस्तार है।ये मैदान महीन कणों वाले अवसादों जैसे मृत्तिका एवं गाद से ढके होते हैं।
महासागरीय गर्त
ये महासागर के सबसे गहरे भाग होते हैं।ये महासागरीय नितल के लगभग 7 प्रतिशत भाग पर फैले हैं।आकार की दृष्टि से महासागरीय गर्तों को दो भागों में विभाजित किया जाता है।लंबे गर्त को ‘खाईं‘ (Trench) जबकि कम क्षेत्रफल वाले किंतु अधिक गहरे गर्त को ‘गर्त’ (Deeps) कहते हैं।विश्व का सबसे गहरा गर्त (Trench) मेरियाना गर्त है जो प्रशांत महासागर में अवस्थित है।
मध्य महासागरीय कटक (Mid-Ocean Ridge)
मध्य महासागरीय कटक नवीन बेसाल्ट चट्टानों की एक पर्वतीय शृंखला के समान है या फिर यह कह सकते हैं कि ये अंतर्जलीय पर्वत तंत्र के समान हैं जिसमें विविध पर्वत श्रेणियां एवं घाटियां पाई जाती हैं।मध्य अटलांटिक कटक सबसे लंबा महासागरीय कटक है जो उत्तर में आइसलैंड से दक्षिण में बोवेट द्वीप तक अंग्रेजी के ‘S’ अक्षर के आकार में विस्तारित है।
प्रवाल द्वीप (Atoll)
ये मुख्यतः उष्ण कटिबंधीय महासागरों में पाए जाने वाले प्रवाल भित्तियों द्वारा निर्मित छोटे आकार के द्वीप होते हैं।ये गहरे अवनमन (Depression) को चारों ओर से घेरे रहते हैं।भारत का लक्षद्वीप प्रवाल द्वीप का सुंदर उदाहरण है।
समुद्री टीला (Seamount)
नुकीले शिखरों वाला एक पर्वत जो समुद्री तली से ऊपर की ओर उठता है परंतु महासागरों के सतह तक नहीं पहुंचता है, समुद्री टीला कहलाता है।ये ज्वालामुखी क्रिया द्वारा निर्मित होते हैं।प्रशांत महासागर स्थित एम्परर (Emperor) समुद्री टीला जो हवाईयन द्वीप का विस्तार है, इसका एक अच्छा उदाहरण है।
अंतःसागरीय कन्दरा (Sub-marine Canyons)
महाद्वीपीय मग्नतट तथा मग्नढाल पर संकरी गहरी तथा खड़ी दीवार वाली घाटियों को महासागर के अंदर होने के कारण ‘अंतःसागरीय कन्दरा’ अथवा ‘कैनियन’ कहते हैं।हडसन कैनियन विश्व का सबसे चर्चित अंतःसागरीय कैनियन है जबकि स्थल भाग पर सबसे चर्चित कैनियन कोलोराडो नदी द्वारा निर्मित ग्रैंड कैनियन है।
निमग्न द्वीप (Guyots)
यह चपटे शिखर वाले एक प्रकार के समुद्री टीले ही होते हैं।इनका निर्माण भी ज्वालामुखी क्रिया के परिणामस्वरूप ही होता है।
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