विशेषज्ञों ने कहा है कि यदि एशिया और मध्य-पूर्व विश्व में एक गुप्त प्रथा के तौर पर जारी एफजीएम प्रथा को समाप्त करने पर ध्यान नहीं दिया गया तो इस प्रथा की समाप्ति के लिये चलाई जा रही वैश्विक मुहिम असफल हो सकती है|एफजीएम यानी फीमेल जेनिटिकल म्युटेसन जैसी क्रूर प्रथा को औरतों के खतने के नाम से भी जाना जाता है| दुनियाभर में हर साल करीब 20 करोड़ बच्चियों या लड़कियों का खतना किया जाता है|यूनिसेफ के आँकड़े बताते हैं कि जिन 20 करोड़ लड़कियों का खतना होता है उनमें से करीब साढ़े चार करोड़ बच्चियाँ 14 साल से भी कम उम्र की होती हैं|
क्या है एफजीएम् प्रथा
रिवाज़ और प्रथाओं के नाम पर अमानवीयता के मामले तो आए दिन सामने आते ही रहते हैं, परन्तु एफजीएम परम्परा और अंधविश्वास का सबसे वीभत्स उदहारण है| इस प्रथा में आमतौर पर छोटी बच्चियों और महिलाओं के बाह्य जननांग काटकर आंशिक या पूर्णतः हटा दिया जाता है| कभी-कभी तो जननांग को धागे से सिलकर मूत्र त्याग के लिये एक छोटी सी जगह छोड़ दी जाती है|खतना कराने की वज़हों में परंपरा सबसे ऊपर है| उसके बाद धर्म, फिर साफ-सफाई और बीमारी से बचने आदि के नाम पर भी लड़कियों का खतना किया जाता है| लेकिन कुछ लोग ऐसे भी तर्क देते हैं कि युवा होने पर लड़कियों की कामेच्छा कम करने के मकसद से भी ऐसा किया जाता है|महिला खतने से कई तरह की मानसिक और शारीरिक दिक्कतें हो सकती हैं| विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कुछ मामलों में तो मौत तक हो सकती है| प्रायः खतने के दौरान या उसके बाद अत्यधिक खून बहने से या बैक्टीरियल इन्फेक्शन से बहुत सी बच्चियों की मौत भी हो जाती है|अफ्रीका के अनेक देशों में स्कूल की छुट्टियों को ‘कटिंग सीजन’ के नाम से जाना जाता है| गर्मियों के दौरान यूरोप, अमेरिका और अन्य क्षेत्रों से भी हजारों की संख्या में लड़कियों को एफजीएम के लिये लाया जाता है|इस क्रूर परंपरा पर दुनिया के बहुत से देशों ने प्रतिबंध है लगा दिया है| गौरतलब है कि हाल ही में जॉर्जिया की सरकार ने संसद में खतना से संबंधित संशोधन मसौदे को पारित कर देश में होने वाले महिलाओं के खतने को अपराध घोषित कर दिया है|
भारत में भी हैं ऍफ़जीएम के मामले
भारत में मुसलमानों के एक छोटे से समुदाय बोहरा में महिलाओं का खतना यानी उनके जननांग के बाहरी हिस्से को रेज़र ब्लेड से काट देने का चलन मौजूद है| दाउदी बोहरा समुदाय एक छोटा मगर समृद्ध शिया मुस्लिम समुदाय है जो मुख्य तौर पर पश्मिची भारत में रहते हैं|यह समुदाय अपनी उत्पत्ति शिया इस्माइली मिशनरियों के 11वीं सदी में मिश्र से यमन होते होते हुए खंभात बंदरगाह पर आने से जोड़कर देखता है| इनमें से अधिकांश मिशनरी गुजरात के व्यापारी बन गए और इन्हें ही आज बोहरा के तौर पर जाना जाता है|विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं का खतना करने का कोई फायदा नहीं है और इससे उन्हें उल्टा नुकसान ही होता है| इसके अलावा यह मानवाधिकार का भी उल्लंघन है| दिसंबर 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने महिलाओं का खतना रोकने के लिये प्रस्ताव पारित किया जबकि ऑस्ट्रेलिया में तीन बोहरा समुदाय के लोगों को महिला खतना का दोषी करार दिया गया| भारत में भी इस प्रथा के खिलाफ़ आवाज उठने लगी है|
निष्कर्ष
आज के दौर में महिलाओं को समान अधिकार देने का दावा किया जाता है, लेकिन अफसोस की बात तो ये है कि ऐसे वक्त में भी दुनिया के तमाम हिस्सों में महिलाएँ बुरे दौर से गुजर रही हैं। इसके लिये कहीं समाज में फैली कुरीतियाँ जिम्मेदार हैं तो कहीं विकृत सोच| बच्चियों और महिलाओं के लिए खतना जैसी परंपरा लगातार पर रोक लगाने के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ वर्ष 2012 से ही प्रयासरत है|विशेषज्ञों के अनुसार इस परम्परा का ज़िक्र न तो क़ुरान में है और न ही हदीस में| यह ज़ाहिर है कि इस प्रथा की ज़िम्मेदार एक संकीर्ण पुरुषवादी मानसिकता भी है| आज दुनिया की अधिकतर आबादी एक विकासशील और नए युग में प्रवेश कर चुकी है,जहाँ पर महिलाएँ सदियों बाद स्वतंत्रता की खुली हवा में साँस ले रही हैं| अत: महिला खतना जैसी बर्बर और क्रूर प्रथा तत्काल बंद होनी चाहिए|विश्व के जिन देशों में ये अमानवीय और आदिवासी प्रथा आज भी ज़ारी है,उसे बंद कराने के लिये वहाँ की सरकार को कानून बनाना होगा जैसा की अभी जॉर्जिया ने बनाया है| सामाजिक संस्थाएँ को चाहिये कि वह लोगों को इस आदिम और निंदनीय प्रथा को त्यागने के लिये जागरूक बनाएँ| वर्तमान समय के हमारे प्रगतिशील और आधुनिक समाज के लिये एफजीएम प्रथा एक बहुत बड़ा कलंक है|