Monday, 2 October 2017

Intreasting fact about Mr Gandhi

Untold truths about Gandhi

1. Gandhi used to sleep with girls of aged between 18 to 25. Very few people know about this but its true (for detail you can read books by Dr. L .R. BALI named “RANGEELA GANDHI” & “KYA GANDHI MAHATMA THE”). The girls who slept with Gandhi accepted this. Gandhi used to say that he is doing all this for his “brahmchari” Experiments. What he wanted to prove from his experiment, nobody knows. Gandhi himself accepted this that at the time of going to London for higher studies he decided to keep himself away from meat, liquor and sex, but he accepted that he could not control himself in the matter of sex.

2. Gandhi went to South Africa just for earning money and name because here in India he could not do well. In SA, he went mainly to save Abdullah & Co. whose business was of smuggling and Gandhi charged heavily for this.

3. In 1932, Gandhi collected Rs. 1.32 crore in the name of “Tilak Swaraj” fund, which was collected for the use of untouchables. However, he did not spend even a single penny on untouchables.

4. Throughout his whole life, Gandhi kept on insisting that he supports non-violence. However, at the time of Second World War, he sent Indian army to fight for England.

5. During the daytime, Gandhi spent the time in the huts but the night in the rest house of Birlas.

6. Gandhi advised people to live a simple life but his simplicity was such that when he was in jail, there were three women to serve him there.

7. Gandhi did not open a single door of any Hindu temple in Gujarat, his home province in India, for the untouchables.

8. Gandhi used to say that Subhash Chandra Bose was like his own son but Gandhi went on hunger strike until Bose left his post in congress. Gandhi also promised British government to handover Bose to them as Bose was wanted at that time.

9. Gandhi kept people in dark about saving Bhagat Singh. the truth is that he never tried to contact the viceroy about Bhagat Singh’s issue. This is said by the friend of viceroy named Manmath Nath in his writings. Gandhi feared about the popularity of Bhagat Singh.

10. Gandhi said that if the Pakistan is created, it will happen only after his death. However, it was Gandhi who signed first on the proposal of creation of Pakistan.

These are only a few facts. There are many more truths about Gandhi. In Baba Saheb Ambedkar’s own words, “Gandhi Age is the Dark Age of India”. He also said in an interview to BBC “A person who cheats and keeps other people in dark; to that person if you call a Mahatma, then Gandhi is a Mahatma.”

Friday, 22 September 2017

Fact about Buddhism

#इस्लाम_ही_नही_बौद्धों_ने_भी_हिन्दुओ_को_लूटा_है

उरुग्वे में कुवा ( kuwa ) नामक एक स्थान पर एक प्राचीन मंदिर भी पाया गया है । जिसमे विशाल मूर्ति के ललाट पर एक नेत्र भी है । फिर भी पुरातत्व विभाग के लोग उसे गौतम बुद्ध की मूर्ति कहते है ।  इसका एक ही कारण हो सकता है, की हिन्दुओ के मंदिर पर बौद्धों का कब्जा ! यह अगर हम छोड़ भी दे, तो गौर करने की बात है , बुद्ध की सभी मुर्तिया लेटी हुई अवस्था मे है । यह सब किसी समय भगवान विष्णु की मुर्तिया रही है । विष्णु के लेटे रहने का कारण है, की भगवान विष्णु के गर्भ से ब्रह्मा का जन्म हुआ है, इसलिए प्रसूति के समय भगवान विष्णु का लेटे रहना स्वाभाविक है, किन्तु बुद्ध को लेटा हुआ बताने के क्या प्रयोजन है ? इस तरह किसी श्रेष्ठ व्यक्ति का बिना काम के लेटा रहना शिष्टाचार है भी नही !

सत्य यही है, की बौद्धों ने भी हिन्दुओ के मंदिरो भवनों पर वैसे ही कब्जा किया है, जैसे मुसलमानो ने ! ओर आज हमारे मंदिरो को यह अपना बताकर गर्व से फुले जाते है । नही तो बुद्ध के त्रिनेत्र ओर लेटे होने का क्या मतलब ?

पुष्यमित्र ओर मिहिरकुल ने ऐसे ही बौद्धों से इतनी घृणा नही की थी !

Tuesday, 5 September 2017

AL- Ajhar - University vs Muslim Teaching

विश्व में सर्वाधिक #आतंकी पैदा करने वाली यूनिवर्सिटी के बारे में भी आपको जान लेना चाहिये।
 
जब से पिछले कुछ वर्षों में इस्लामिक आतंक की विभीषिका बढ़ी है, तभी से अक्सर यह सवाल कई बौद्धिक क्षेत्रों में उठाया जाता रहा है कि आखिर वह कौन सी शिक्षा है अथवा वह कौन सा ग्रन्थ या किताब है, जिससे प्रभावित होकर अथवा जिसे पढ़कर आतंकी बन रहे हैं.

आखिर वह कौन सा शिक्षक या कौन सा कॉलेज है जहाँ से खूँखार आतंकी निकल रहे हैं. अंततः एक एजेंसी ने समूचे विश्व की विभिन्न इस्लामिक स्टडीज़ करवाने वाली यूनिवर्सिटी (जिसमें भारत का देवबन्द भी शामिल है), तमाम मदरसों, मस्जिदों एवं ज़ाकिर नाईक जैसे “इस्लामिक स्कॉलर” इत्यादि के बारे में एक व्यापक सर्वे किया. ताकि यह पता लगाया जा सके कि आखिर गला रेतने, बम विस्फोट करने, भीड़ पर ट्रक चढ़ा देने जैसे आईडिया कहाँ से निकल रहे हैं.

इस सर्वे का नतीजा बड़ा ही चौंकाने वाला है. मिस्र की राजधानी काहिरा में चलने वाली विश्व की सबसे बड़ी सुन्नी इस्लामिक संस्था अर्थात “अल-अज़हर विश्वविद्यालय” ने इस सूची में टॉप का स्थान प्राप्त किया है. जब यहाँ पढने वाले छात्रों की सूची से मिलान किया गया तो पाया गया कि विश्व के सबसे घातक, खूँखार आतंकी इसी विश्वविद्यालय से “औपचारिक शिक्षा” प्राप्त करके निकले हुए हैं. कई इस्लामिक विशेषज्ञ इस बात पर विचार कर रहे हैं कि क्या कुरआन में से हिंसा फैलाने वाली कुछ आयतों को निकाला जा सकता है. वहीं दूसरी तरफ अल-अज़हर विवि के पाठ्यक्रम को देखने से साफ़ पता चलता है कि कुरआन की मनमर्जीपूर्ण व्याख्या करने में यहाँ के मौलाना बहुत घातक किस्म के हैं.

मिस्र के इस अल-अज़हर विश्वविद्यालय से दुनिया भर के कई संस्थान जुड़े हुए हैं. सर्वे के अनुसार विश्व की हजारों मस्जिदों, लाखों मदरसों में इस विश्वविद्यालय से जाने वाला पाठ्यक्रम पढ़ाया जा रहा है. मिशिगन स्थित अमेरिका की सबसे संदिग्ध मानी जाने वाली “इस्लामिक अमेरिकन यूनिवर्सिटी” का पाठ्यक्रम भी अल-अज़हर से ही आता है. उल्लेखनीय है कि अमेरिका की इस यूनिवर्सिटी से “इस्लामिक ब्रदरहुड” नामक आतंकी संगठन वर्षों से जुड़ा हुआ है. इजिप्ट सरकार द्वारा जारी “शासकीय” आँकड़ों के अनुसार 2013 में अल-अज़हर विश्वविद्यालय से जुड़े छात्रों की संख्या 2,97,000 (दो लाख सत्तानवे हजार) थी. 2015 के आँकड़ों के मुताबिक़ 39,000 विदेशी छात्र ऐसे हैं जो यहाँ इस्लामिक ज्ञान प्राप्त करने आ रहे हैं. इन विदेशी छात्रों में पाकिस्तान, सूडान, लीबिया, कतर जैसे देशों के दर्जनों छात्र शामिल हैं. यहाँ के पाठ्यक्रम में “कुरआन” का हवाला देते हुए गैर-मुस्लिमों को मौत देने के विभिन्न तरीकों के बारे में, गैर-मुस्लिम महिलाओं के साथ बलात्कार एवं अपमान करने की पद्धतियों के बारे में सिखाया जा रहा है. मिस्र के कई बुद्धिजीवियों ने सरकार से अनुरोध भी किया है कि अल-अज़हर यूनिवर्सिटी को आतंकवादी संस्थान घोषित किया जाए, परन्तु फिलहाल मिस्र सरकार की हिम्मत नहीं हो रही है.

2015 में मिस्र के सबसे बड़े अखबार “अल-योम-अल-साबी” ने इस यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम के बारे में विस्तार से शोध करके एक खबर प्रकाशित की थी. अखबार के मुताबिक़ यहाँ पढ़ाई जाने वाली दर्जनों किताबों में से एक है “अबी-शोगा” की पुस्तक हल-अलफ़ाज़-इब्न-अबी-शोगा. इस पुस्तक में स्पष्ट लिखा गया है कि कुरआन के मुताबिक़ “कोई भी मुस्लिम, किसी भी गैर-मुस्लिम को किसी भी समय काफिर घोषित करके उसकी हत्या कर सकता है. यहाँ तक कि पुस्तक में गैर-मुस्लिम का माँस खाना भी कुरआन में जायज़ बताया गया है. अबी-शोगा की इस पुस्तक के अनुसार मुसलमानों पर किसी काफिर का बुरा प्रभाव न पड़े, इसलिए वह उस काफिर की आँखें निकालने अथवा एक हाथ और एक पैर काटने के लिए स्वतन्त्र है...”. यहाँ तक कि अल-अज़हर यूनिवर्सिटी में पढाए जाने वाले पाठ्यक्रम में मुस्लिम भी सुरक्षित नहीं हैं. इसी किताब में आगे लिखा गया है कि “इमाम की अनुमति के बिना, नमाज़ नहीं पढने वाले मुस्लिम को क़त्ल कर दिया जाना चाहिए...”. जब मिस्र सरकार ने जाँच की तो पाया कि मुस्लिम ब्रदरहुड नामक खतरनाक संगठन में भर्ती होने वाले ढेर सारे आतंकी इसी विश्वविद्यालय से पढ़कर निकले हुए हैं. 2006 में ही एक वीडियो लीक हो गया था, जिसमें अल-अज़हर यूनिवर्सिटी के अन्दर ही (वर्तमान ISIS की तरह) काले कपड़े पहने लगभग पचास नकाबपोश युद्ध और गला काटने की ट्रेनिंग लेते हुए दिखाए गए थे. इस वीडियो ने उसी समय कई सरकारों के होश उड़ा दिए थे, लेकिन इस तरफ गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया और अब ग्यारह वर्ष बाद पूरी दुनिया सुन्नी इस्लामिक शिक्षाओं से पीड़ित हो रही है.

अब विश्व में इस बात पर कभी कोई नहीं चौंकता यदि कोई आतंकवादी अल-अज़हर यूनिवर्सिटी से जुड़ा हुआ पाया जाता है. उदाहरण के लिए बोको हराम का नेता अबू-बक्र शेखू ने इसी अल-अज़हर विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट किया है. अल-कायदा का सबसे पहला आतंकी अब्दुल्ला आज़म (1941-1989) यहाँ से पढ़ा. इसके बाद ओसामा बिन लादेन का “आध्यात्मिक गुरु” माना जाने वाला “अँधा शेख” के नाम से प्रसिद्ध उमर अब्दुल रहमान (1938-2017) भी इसी विश्वविद्यालय से निकला हुआ है. येरूशलम का खतरनाक मुफ्ती हाजी अमीन अल हुसैनी (1897-1974) भी यहीं का छात्र रहा है, रूस के एक हवाई जहाज को बम विस्फोट में उड़ाने वाला अबू ओसामा अल मसिरी भी इसी यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट होकर निकला है.

यह विश्वविद्यालय केवल सुन्नी वहाबी कुरआन की व्याख्या और उसके किताबी ज्ञान तक ही सीमित नहीं है. बल्कि अब यहाँ से फतवे भी जारी किए जाने लगे हैं. चूंकि विश्व भर में इस यूनिवर्सिटी के छात्र, मौलाना, इमाम और तालिबान निकले हुए हैं, इसलिए वे ऐसे फतवों को हाथोंहाथ लेते हैं और उसे अंजाम तक पहुँचाते हैं. हाल ही में इस विश्वविद्यालय के प्रमुख ने मुस्लिम विद्वान इस्लाम-अल-बाहिरी को ईशनिंदा के आरोप में मौत की सजा सुनाई है. यह मुस्लिम विद्वान फिलहाल मिस्र सरकार की जेल में कैद है. अल-अज़हर विवि ने ही मिस्र के सेक्यूलर माने जाने वाले बुद्धिजीवी फराग फ़ाउदा (1945-1992) के खिलाफ फ़तवा ज़ाहिर किया था. पिछले माह चीन सरकार ने मिस्र सरकार से आग्रह करके अल-अज़हर यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे चीनी मुस्लिम छात्रों की सूची मँगवाई, और अब चीन सरकार ने सख्त कदम उठाते हुए उन सभी छात्रों को तत्काल चीन लौट आने का आदेश दिया है.

कुल मिलाकर बात यह है कि अल-अज़हर यूनिवर्सिटी समूचे विश्व के लिए गंभीर खतरा बन चुकी है. मिस्र सरकार को हिम्मत जुटाकर इस विश्वविद्यालय पर अपना कब्ज़ा करना चाहिए, तथा यहाँ पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम में बदलाव करके उसे थोड़ा “मानवीय” बनाने का प्रयास करना चाहिए. यदि मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फ़तेह अल-सीसी वास्तव में इस्लाम की बिगड़ती छवि को लेकर चिंतित हैं तो उन्हें सबसे पहले इस सुन्नी वहाबी संस्थान पर नकेल कसनी होगी. यदि ऐसा नहीं किया गया तो भविष्य में भी तमाम रहमान, आज़म और शेखू यहाँ से “इस्लामिक शिक्षाएँ” प्राप्त करके निकलते रहेंगे और पूरे विश्व में आतंक फैलाते रहेंगे. दूसरी बात यह है कि केवल इस विश्वविद्यालय को बंद करके अथवा इसमें बदलाव करके कोई ख़ास फायदा नहीं होगा, क्योंकि इस यूनिवर्सिटी से जुड़े हुए विश्व के दूसरे हजारों मदरसों, इस्लामिक स्टडी संस्थानों पर निगाह रखना लगभग नामुमकिन है. कुरआन की आयतों और हदीसों की झूठी व्याख्या देकर हर गलत आदमी अपनी मनमानी से कर रहा है, जबकि इसके लिए एक विश्वव्यापी सर्वानुमत ढाँचा होना चाहिए. जब तक अल-अज़हर जैसी दर्जनों यूनिवर्सिटी, मदरसों, मस्जिदों इत्यादि पर काबू नहीं पाया जाता, तब तक इस्लामिक आतंक से मुक्ति मिलना संभव नहीं है.

अल-अज़हर विश्वविद्यालय

Wednesday, 9 August 2017

Article 35-A

चर्चा में है अनुच्छेद 35 A
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14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश पारित किया था. इस आदेश के जरिए भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35 (A) जोड़ दिया गया.
अनुच्छेद 35 A, धारा 370 का ही हिस्सा है. अनुच्छेद 35 A के मुताबिक जम्मू कश्मीर का नागरिक तभी राज्य का हिस्सा माना जाएगा जब वो वहां पैदा हुआ हो। कोई भी दूसरा नागरिक जम्मू कश्मीर में ना तो संपत्ति खरीद सकता है और ना ही वहां का स्थायी नागरिक बनकर रह सकता है.

*अब सवाल ये है कि जम्मू कश्मीर का स्थायी नागरिक है कौन?
1956 में जम्मू कश्मीर का संविधान बना, जिसमें स्थायी नागरिकता को परिभाषित किया गया है।जम्मू कश्मीर के संविधान के मुताबिक स्थायी नागरिक वो व्यक्ति है जो 14 मई, 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले के 10 वर्षों से राज्य में रह रहा हो, और उसने वहां संपत्ति हासिल की हो. बहुत ही आसान भाषा में अनुच्छेद 35A मे यह प्रावधान है कि बहुत से लोग अपना घर और राज्य छोड़कर दूसरे राज्यों में जाकर बसे होंगे. और आप लोगों ने उस राज्य में अपनी ज़मीनें खरीदी होंगी या फिर घर भी खरीदें होंगे। लेकिन अगर आप जम्मू कश्मीर में जाएंगे तो आप वहां पर ज़मीन या घर नहीं खरीद सकते. क्योंकि अनुच्छेद 35A आपको ऐसा करने से रोकता है। संविधान में कुछ अन्य प्रावधान ऐसे.भी हैं जिसका प्रभाव अनुच्छेद 370 से अधिक व्यापक और हानिकारक है। इसमें एक अनुच्छेद 35A है।

इस प्रावधान को भारतीय जनमानस को जानना चाहिए। यह अनुच्छेद भारतीय नागरिकों के ’मूलभूत अधिकारों’ को सीमित करता है और यह भी हो सकता है कि अनुच्छेद 370 हट जाने पर भी यह प्रावधान बना रहे जिसका प्रभाव अब तक काफी दुष्परिणामी रहा है। एैसी स्थिति में अनुच्छेद 35A को समझना आवश्यक है क्योंकि जम्मू-कश्मीर विषय को संवैधानिक दृश्टि से कम, राजनीतिक दृश्टि से अधिक समझने की कोशिश की गयी है।

आधुनिक राजनीतिक आदर्शों में इस मान्यता को बल मिलता है कि प्रत्येक व्यक्ति के मानवमात्र् होने के कारण उसे कुछ नैसर्गिक अधिकार प्राप्त हैं, साथ ही नागरिक होने के कारण व्यक्ति को कुछ ’मौलिक अधिकार’ भी राज्य द्वारा प्रदान किये जाते हैं। इन्हीं मान्यताओं को स्वीकार करते हुए संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाग-3 में मानवाधिकारों और मौलिक अधिकारों के मिश्रित भावों को स्थान दिया। इन अधिकारों का वर्णन अनुच्छेद 12 से लेकर अनुच्छेद 35 तक मिलता है। इसी भाग का एक हिस्सा अनुच्छेद 35A है। यह अनुच्छेद भारत के मूल संविधान में नही था। इसके लिए अतिरिक्त व्यवस्था करते हुए, इसे संविधान के परिशिष्ट दो में रखा गया है।
इस व्यवस्था का यदि विश्लेषण किया जाय तो पता चलता है कि यह प्रावधान सैधांतिक रूप से कितना अप्रासंगिक है; कितनी मान्यताओ का उल्लंघन करता है और कितना अलोकतांत्रिक है। अनुच्छेद 35A नागरिकों के मौलिक अधिकारों को नगण्य करता है। यह नैसर्गिक अधिकारों के विरोध में है। इसकों लागू करने की पद्यति भी अलोकतांत्रिक है और यह सच छुपाये रखने की साजिश भी है।

सबसे पहले तो यह विधि के ’समक्ष समानता’ और ’विधि के समान संरक्षण’ सिद्धांत का विरोधी है। आधुनिक राजनीतिक व्यवस्था ‘विधि के शासन’ पर आधारित है। प्रत्येक देश के शासन का संचालन करने के लिए कुछ मौलिक दस्तावेज होते हैं। साधारण भाषा में इसे संविधान कहते हैं। विधि के शासन का प्रथम सिद्धांत है कि ’विधि के समक्ष’ प्रत्येक व्यक्ति समान है और प्रत्येक व्यक्ति को ’विधि का समान’ संरक्षण प्राप्त होगा। इसका अर्थ यह है कि समाज में किसी भी व्यक्ति को न तो कोई विषेशाधिकार प्राप्त होगा और न ही किसी व्यक्ति को उसके अभाव के कारण निम्नतर समझा जायेगा। यह व्यक्ति का नैसर्गिक अधिकार भी है कि समान परिस्थितियों में प्रत्येक व्यक्ति के साथ समान व्यवहार किया जाय। इसकी रक्षा के लिए संविधान लिखित आश्वासन भी देता है। भारत का संविधान भी इन्हीं मूल्यों को अनुच्छेद 14 में स्थान देता है। इस अनुच्छेद में वर्णित है कि ’राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र के किसी व्यक्ति को ‘विधि के समक्ष समता’ से या ‘विधियों के समान संरक्षण’ से वंचित नही करेगा।

लेकिन अनुच्छेद 35A भारत में ही दोहरी विधिक-व्यवस्था का निर्माण करता है। यह अनुच्छेद मौलिक अधिकारों को सीमित करता है और जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को विशेष स्थिति प्रदान करता है जो ‘विधि के समक्ष समानता’ के सिद्धांत का खुला उल्लंघन है।

दूसरा, अनुच्छेद 35A के संविधान में समाविष्ट की प्रक्रिया ही पूर्णतः असंवैधानिक है। संविधान में एक भी शब्द जोड़ने या घटाने की शक्ति जिसे संविधान संशोधन कहा जाता है, केवल भारतीय संसद को प्राप्त है। सर्वोच्च न्यायालय इस संशोधन की संवैधानिकता की जाँच कर सकता है। अनुच्छेद 368 संसद के संविधान संशोधन की शक्ति और प्रक्रिया का निर्धारण करते हुए कहता है कि ‘संविधान में किसी बात के होते हुए भी, संसद अपनी संविधायी शक्ति का प्रयोग करते हुए इस संविधान के किसी उपबंध का परिवर्धन, परिवर्तन या निरसन के रूप में संशोधन इस अनुच्छेद में अधिकथित प्रक्रिया के अनुसार कर सकेगी’। प्रक्रिया के विषय में कहता है कि संविधान संशोधन का आरंभ संसद के किसी सदन में इस प्रयोजन के लिए विधेयक पुनर्स्थापित करके ही किया जा सकेगा और जब वह विधेयक प्रत्येक सदन में उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया जाता है, तब उसे राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा, जिस पर वह अपनी अनुमति देगा और तब संविधान उस विधेयक के निंबधनों के अनुसार संशोधित हो जायेगा।

तीसरा, यह अनुच्छेद ’मूलभूत संरचना’ के विरोध में है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ’केशवानंद भारती वाद’ में यह निर्णय दिया है कि भारतीय संसद को यह शक्ति प्राप्त है कि वह विधान के किसी भाग में संशोधन कर सकती है, लेकिन वह संविधान की ’मूलभूत संरचना’ में परिवर्तन नही कर सकती। उस समय न्यायालय ने मौलिक अधिकारों को मूलभूत संरचना का हिस्सा माना था लेकिन अनुच्छेद 35A मूलभूत अधिकारों में वर्णित प्रावधानों को बाधित करता है। यह उसके महत्व और प्रभाव को न्यून करता है। इस प्रकार मूलाधिकारों के उल्लघंन के साथ-साथ ’मूलभूत संरचना के सिद्धांत’ का भी उल्लंघन होता है।

चौथा, यह सच को छुपाये रखने की साजिश भी है। सबसे आश्चार्य की बात यह है कि अनुच्छेद 35A को मौलिक अधिकारों के प्रावधान वाले हिस्से में भी नही रखा गया। इसको संविधान के परिशिष्ट दो में स्थापित किया गया। अधिकतर संविधान के जानकर चाहे वह न्यायालय से हो या विद्यालय से, इस अनुच्छेद से अनभिज्ञ है। इसका कारण इसके स्थान का निर्धारण है। जिन किताबों को सामान्य विद्यार्थी, अध्यापक और विधिवेत्ता पढ़ते हैं, उसमें इस अनुच्छेद का उल्लेख ही नही है। यह सच को छुपाये रखने की साजिश है क्योंकि यदि 2002 में अनुच्छेद 21 में संशोधन करके 21A जोड़ा जा सकता है, तो 35A को अनुच्छेद 35 के बाद क्यों नही रखा जा सकता है।  इसके लिए परिशिष्ट में जोड़ने की क्या आवश्यकता थी?

सरकार जब जम्मू-कश्मीर के किसी संवैधनिक हल को खोजेने का प्रयास करेगी तो उसे अनुच्छेद 35A को भी ध्यान में रखना होगा क्योंकि मौलिक अधिकारों को, संविधान में वर्णित ’युक्तियुक्त प्रतिबंधों’ के अतिरिक्त किसी भी अन्य आधार पर सीमित नहीं किया जा सकता। 35A उसी का एक रूप है। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने अगस्त 2014 में विशेष याचिका के माध्यम से इसकी संवैधानिकता के प्रश्न को संज्ञान में ले लिया है।

Saturday, 29 July 2017

Cellular Jail (brief summary)

*सेल्यूलर जेल’

'सेल्यूलर जेल’ अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है. इस जेल के निर्माण का ख्याल अंग्रेजों के दिमाग में 1857 के विद्रोह के बाद आया था. अर्थात इस जेल का निर्माण अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए किया गया था. इसका निर्माण कार्य 1896 में शुरू हुआ था और 1906 में यह बनकर तैयार हो गई थी. जिस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को इस सेल्यूलर जेल में भेजा जाता था उसे साधारण बोल चाल की भाषा में कहा जाता थी कि उसे काला पानी की सजा हुई है.

इसे काला पानी इसलिए कहा जाता था क्योंकि यह जेल भारत की मुख्य भूमि से हजारों किलोमीटर दूर स्थित थी. राजधानी पोर्ट ब्लेयर में जिस जगह पर यह जेल बनी हुई थी उसके चारों ओर पानी ही पानी भरा रहता था क्योंकि यह पूरा क्षेत्र बंगाल की खाड़ी के अंतर्गत आता है.

सेल्यूलर जेल की संरचना के बारे में
सेल्यूलर जेल में तीन मंजिल वाली 7 शाखाएं बनाई गईं थी, इनमें 696 सेल तैयार की गई थीं हर सेल का साइज 4.5 मीटर x 2.7 मीटर था. तीन मीटर की उंचाई पर खिड़कियां लगी हुई थी अर्थात अगर कोई कोई कैदी जेल से बाहर निकलना चाहे तो आसानी से निकल सकता था लेकिन चारों ओर पानी भरा होने के कारण कहीं भाग नही सकता था. इस सेल्यूलर जेल के निर्माण में करीब 5 लाख 17 हजार रुपये की लागत आई थी.इसका मुख्य भवन लाल इटों से बना है, ये ईंटे बर्मा से यहाँ लाई गई थीं जो कि आज म्यांमार के नाम से जाना जाता है. जेल की सात शाखाओं के बीच में एक टॉवर है. इस टॉवर से ही सभी कैदियों पर नजर रखी जाती थी. टॉवर के ऊपर एक बहुत बड़ा घंटा लगा था. जो किसी भी तरह का संभावित खतरा होने पर बजाया जाता था.
(सेल्यूलर जेल की संरचना इस प्रकार थी)

इस जेल को सेल्युलर क्यों कहा जाता था
सेल्यूलर जेल आक्टोपस की तरह सात शाखाओं में फैली थी जिसमे कुल 696 सेल तैयार की गई थीं. यहाँ एक कैदी को दूसरे कैदी से बिलकुल अलग रख जाता था. जेल में हर कैदी के लिए अलग सेल होती थी. यहाँ पर कैदियों को एक दूसरे से अलग रखने का एक मकसद यह हो सकता है कि कैदी आपस में स्वतंत्रता आन्दोलन से जुडी कोई योजना ना बना सकें और अकेलापन के जीवन जीते जीते अन्दर से ही टूट जाएँ ताकि वे लोग सरकार के प्रति किसी भी तरह की बगावत करने की हालत में ना रहें.

इस जेल में बंद क्रांतिकारियों पर बहुत जुल्म ढाया जाता था. क्रांतिकारियों से कोल्हू से तेल पेरने का काम करवाया जाता था. हर कैदी को 30 पाउंड नारियल और सरसों को पेरना होता था. यदि वह ऐसा नहीं कर पाता था तो उन्हें बुरी तरह से पीटा जाता था और बेडिय़ों से जकड़ दिया जाता था.

यहाँ पर कौन कौन क्रांतिकारियों ने सजा काटी है?
सेल्यूलर जेल में सजा काटने वालों में कुछ बड़े नाम हैं- बटुकेश्वर दत्त,विनायक दामोदर सावरकर, बाबूराव सावरकर, सोहन सिंह, मौलाना अहमदउल्ला, मौवली अब्दुल रहीम सादिकपुरी, मौलाना फजल-ए-हक खैराबादी, S.चंद्र चटर्जी, डॉ. दीवान सिंह, योगेंद्र शुक्ला, वमन राव जोशी और गोपाल भाई परमानंद आदि.

सेल्यूलर जेल की दीवारों पर वीर शहीदों के नाम लिखे हैं. यहां एक संग्रहालय भी है जहां उन अस्त्रों को देखा जा सकता है जिनसे स्वतंत्रता सैनानियों पर अत्याचार किए जाते थे.

भारत को आजादी मिलने के बाद इसकी दो और शाखाओं को ध्वस्त कर दिया गया था. शेष बची 3 शाखाओं और मुख्य टॉवर को 1969 में राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया. सन 1963 में यहाँ गोविन्द वल्लभ पंत अस्पताल खोला गया था. वर्तमान में यहाँ 500 बिस्तरों वाला अस्पताल है और 40 डॉक्टर यहाँ के निवासियों की सेवा कर रहे है.10 मार्च 2006 को सेल्युलर जेल का शताब्दी वर्ष समारोह मनाया गया था जिसमे यहाँ पर सजा काटने वाले क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि दी गयी थी.
सेल्यूलर जेल और जेल संग्रहालय के लिए समय:
09:00 पूर्वाह्न से 12:30 अपराह्न, 01:30 बजे से 04:45 बजे (राष्ट्रीय छुट्टियों को छोड़कर सभी दिन खुला)

Friday, 14 July 2017

Geography ncert hindi medium

https://drive.google.com/drive/mobile/folders/0B1l0SmFcKUHuZHJmVndFdUgxbU0

Saturday, 17 June 2017

oceanography

महासागरीय नितल के उच्चावच

November 28, 2014   ज्ञानिकी

13 अंकों में अविष्कार/खोज, अंकों में राष्ट्रगानअंकों में संसदअंकों में मुद्राओं तथा 11 अंकों में धरातलीय आकृतियों के पश्चात अब ज्ञानिकी तहत पृथक-पृथक शीर्षकों में जानकारियां प्रदान की जा रही हैं। गत अंकों में परिवहन के विभिन्न घटकों एवं जलमंडल पर जानकारी प्रस्तुत की गई थी। इस अंक में महासागरीय नितल के उच्चावच (Relief of the Ocean Floor) पर जानकारी प्रस्तुत की जा रही है।

महासागर प्रथम श्रेणी का उच्चावच है। यह पृथ्वी के गहरे क्षेत्रों के रूप में वर्गीकृत है तथा इसमें पृथ्वी की विशाल जलराशि संचित है। महाद्वीपों के विपरीत महासागर एक दूसरे से स्वाभाविक रूप में इतने करीब हैं कि उनका सीमांकन करना कठिन हो जाता है। फिर भी भूगोलविदों ने पृथ्वी के महासागरीय भाग को पांच महासागरों में विभाजित किया है। जिनके नाम हैं- प्रशांत, अटलांटिक, हिंद, दक्षिणी एवं आर्कटिक।

जिस प्रकार स्थलीय भाग पर पर्वत, पठार व मैदान आदि पाए जाते हैं, उसी प्रकार महासागरीय नितल पर भी विभिन्न प्रकार की आकृतियां पाई जाती हैं।

महासागरीय नितल अथवा अधस्तल को चार प्रमुख भागों में बांटा जा सकता है-(i) महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf) (ii) महाद्वीपीय मग्नढाल (Continental Slope), (iii) गहरे समुद्री मैदान (Deep Sea Plain) तथा (iv) महासागरीय गर्त (Oceanic Deeps)।

महाद्वीपीय मग्नतट

यह महासागर का सबसे उथला भाग होता है जिसकी औसत प्रवणता 1 डिग्री या उससे भी कम होती है।महाद्वीपीय मग्नतटों की चौड़ाई में एक महासागर से दूसरे महासागर के बीच भिन्नता पाई जाती है।यहां पर अवसादों की मोटाई भी अलग-अलग होती है।यहां लंबे समय तक प्राप्त स्थूल तलछट अवसाद जीवाश्मी ईंधनों के स्रोत बनते हैं।समुद्र में जो भी प्राकृतिक गैसों एवं पेट्रोलियम के भंडार पाए गए हैं, उन सबका संबंध महाद्वीपीय मग्न तट से ही है।यह महासागरीय नितल के 8.6 प्रतिशत भाग पर फैले हैं।

महाद्वीपीय मग्नढाल

मग्नतट तथा सागरीय मैदान के बीच तीव्र ढाल वाले मंडल को ‘महाद्वीपीय मग्नढाल’ कहते हैं।इसकी ढाल प्रवणता मग्नतट के मोड़ के पास से सामान्यतः 4o से अधिक होती है।मग्नढाल पर जल की गहराई 200 मीटर से 3000 मीटर के बीच होती है।मग्नढाल समस्त सागरीय क्षेत्रफल के 8.5 प्रतिशत पर फैला है।मग्नढालों पर सागरीय निक्षेप का अभाव पाया जाता है।

गहरे समुद्री मैदान

गहरे समुद्री मैदान महासागरीय बेसिनों के मंद ढाल वाले क्षेत्र होते हैं।इनकी गहराई 3000 से 6000 मीटर तक होती है।समस्त महासागरीय क्षेत्रफल के 70 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र पर इनका विस्तार पाया जाता है। उल्लेखनीय है कि इनका विस्तार भिन्न-भिन्न महासागरों में भिन्न-भिन्न है।प्रशांत महासागर में इनका सर्वाधिक विस्तार है।ये मैदान महीन कणों वाले अवसादों जैसे मृत्तिका एवं गाद से ढके होते हैं।

महासागरीय गर्त

ये महासागर के सबसे गहरे भाग होते हैं।ये महासागरीय नितल के लगभग 7 प्रतिशत भाग पर फैले हैं।आकार की दृष्टि से महासागरीय गर्तों को दो भागों में विभाजित किया जाता है।लंबे गर्त को खाईं (Trench) जबकि कम क्षेत्रफल वाले किंतु अधिक गहरे गर्त को गर्त (Deeps) कहते हैं।विश्व का सबसे गहरा गर्त (Trench) मेरियाना गर्त है जो प्रशांत महासागर में अवस्थित है।

मध्य महासागरीय कटक (Mid-Ocean Ridge)

मध्य महासागरीय कटक नवीन बेसाल्ट चट्टानों की एक पर्वतीय शृंखला के समान है या फिर यह कह सकते हैं कि ये अंतर्जलीय पर्वत तंत्र के समान हैं जिसमें विविध पर्वत श्रेणियां एवं घाटियां पाई जाती हैं।मध्य अटलांटिक कटक सबसे लंबा महासागरीय कटक है जो उत्तर में आइसलैंड से दक्षिण में बोवेट द्वीप तक अंग्रेजी के ‘S’ अक्षर के आकार में विस्तारित है।

 

 

प्रवाल द्वीप (Atoll)

ये मुख्यतः उष्ण कटिबंधीय महासागरों में पाए जाने वाले प्रवाल भित्तियों द्वारा निर्मित छोटे आकार के द्वीप होते हैं।ये गहरे अवनमन (Depression) को चारों ओर से घेरे रहते हैं।भारत का लक्षद्वीप प्रवाल द्वीप का सुंदर उदाहरण है।

समुद्री टीला (Seamount)

नुकीले शिखरों वाला एक पर्वत जो समुद्री तली से ऊपर की ओर उठता है परंतु महासागरों के सतह तक नहीं पहुंचता है, समुद्री टीला कहलाता है।ये ज्वालामुखी क्रिया द्वारा निर्मित होते हैं।प्रशांत महासागर स्थित एम्परर (Emperor) समुद्री टीला जो हवाईयन द्वीप का विस्तार है, इसका एक अच्छा उदाहरण है।

अंतःसागरीय कन्दरा (Sub-marine Canyons)

महाद्वीपीय मग्नतट तथा मग्नढाल पर संकरी गहरी तथा खड़ी दीवार वाली घाटियों को महासागर के अंदर होने के कारण ‘अंतःसागरीय कन्दरा’ अथवा ‘कैनियन’ कहते हैं।हडसन कैनियन विश्व का सबसे चर्चित अंतःसागरीय कैनियन है जबकि स्थल भाग पर सबसे चर्चित कैनियन कोलोराडो नदी द्वारा निर्मित ग्रैंड कैनियन है।

निमग्न द्वीप (Guyots)

यह चपटे शिखर वाले एक प्रकार के समुद्री टीले ही होते हैं।इनका निर्माण भी ज्वालामुखी क्रिया के परिणामस्वरूप ही होता है।

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